हरिद्वार की गूंज (24*7)
(गगन शर्मा) हरिद्वार। शिक्षण संस्थानों में जहाँ वर्ष में विभिन्न कारणों से अवकाश होना सामान्य बात है तो वही हमारे समाज में जहाँ नारी को देवी के तुल्य सम्मान दिया जाता है। नारी सशक्तिकरण की बड़ी बड़ी बात की जाती है ये बात सनातन धर्म के करवाचौथ त्योहार पर क्यो खोखली साबित हो जाती है? अन्य विभाग की बात तो दूर समाज को शिक्षित करके देश को विकसित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली मुश्किल ही कोई ऐसा स्कूल, कॉलेज होगा जिसका प्रबन्धन अपने यहाँ महिला शिक्षकों को करवाचौथ त्योहार पर अवकाश देकर अपनी स्वस्थ और बड़ी सोच का परिचय दिया हो। छात्र छोटे हो या बड़े उनको पढ़ाने में करवाचौथ का वर्त रखने वाली महिला की ऊर्जा तो लगेगी ही ऐसे में उससे किसी भी प्रकार का कार्य लेना पाप से कम नही है। इस से भी दुःखद बात तब होती है जब किसी शिक्षण संस्थान के प्रबन्धन में महिला की भागीदारी हो उसके बावजूद वह अन्य महिला के बारे में चिंतन और आवश्यक कदम न उठाये। शायद शिक्षा के इसी स्तर के चलते हमारे समाज से निरंतर नैतिकता का पतन हो रहा है और शिक्षित युवा पीढी सड़को और सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से अपना बहुमुल्य जीवन बर्बाद कर लेते है।