देहरादून

संघर्ष, चुनौती, सफलता की कहानी कहता ‘सफर’

राजेश कुमार देहरादून प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
ख़ाकी पहनी है जिसने सीने पर उसका सफर कठिनाईयों से भरा होता है, चुनौतियों भले ही कैसी भी हो साहस खाकी कभी छोड़ती नही, जीत की चाह होती है जिस ‘रक्षक’ में, वह हार को भी जीत में बदलने का साहस रखता है।

(राजेश कुमार) देहरादून। यह पंक्तियों उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जिनका युवा अशोक से भारतीय प्रशासनिक सेवा के अशोक कुमार का सफर और प्रशासनिक सेवा से उत्तराखंड के पुलिस मुखिया का सफर तय करना आसान तो न था पर उनकी कटिबद्धता, चुनौतियों से न घबराने, लगातर आगे बढ़ना, आम जनता को खुद से जोड़ने व हर जिम्मेदारी को परस्पर निभाने की अडिगता ने उनको प्रदेश के सबसे सफल व ऐतिहासिक पुलिस महानिदेशक के कार्यकाल का गौरव सौंप दिया। आज से लगभग 34 साल पहले जब उनके द्वारा बतौर एएसपी अलाहाबाद में बतौर पुलिस अधिकारी अपना कार्यभार ग्रहण किया था तब उनके अंदर मात्र जोश व खाकी के लिए कुछ करने का जज्बा था,जो उनकी आने वाले अगले कुछ वर्षों में अलीगढ़, रुद्रपुर, मथुरा, रामपुर, चमोली,बागपत, हरिद्वार, मैनपुरी, नैनीताल आदि में तैनाती के साथ अनुभव, बेबाकी में तब्दील होते चले गए। मैदानी क्षेत्रों में उस समय के शाहजहांपुर, मैनपुरी के बढ़ते हुए क्राइम ग्राफ, गुंडागर्दी से उनका नजदीक से पाला पड़ा जिसमें सूझबूझ,हिम्मत व एक अधिकारी के तौर पर कैसे निबटने है का बेहतरीन उदहारण उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस के आने वाले अधिकारियों के सम्मुख पेश किया। उनके द्वारा इस दौरान अपने कार्यकाल के पहले दशक में चमोली की कमान भी सम्भाली जहां उनके द्वारा उत्तराखंड आंदोलन की चरम सीमा पर जनपद में शांतिपूर्ण आंदोलन को सम्पन्न करवाया जो आज भी पुलिस के इतिहास में कुशल व्यवस्था के तौर पर मानी जाती है। अशोक कुमार बतौर युवा अधिकारी के तौर पर बहादुर व कुशल पुलिस अधिकारी के तौर पर जाने जाते थे जिनके द्वारा तराई क्षेत्रो में उक्त समय मे सक्रिय बदमाशो, अपराधियों पर लगाम लगाने को सफल कोशिशें की गयी।

उनका उत्तराखंड से सदैव ही खास रिश्ता रहा है और यह बात उनके द्वारा कई मौकों पर कही भी गयी है, उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड का विभाजन होने के बाद प्रदेश को जो बेस्ट पुलिस ऑफिसर्स मिले उसमे उनका नाम शीर्ष में शामिल रहा है। उनके द्वारा प्रदेश पुलिस में डीआईजी, आईजी,लॉ एंड आर्डर, एडीजे जैसे पद संभाले। उनके द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान बीएसएफ, आईटीबीपी की भी जिम्मेदारियां बखूबी निभाई गयी। अशोक कुमार के कार्यों में सदैव ही एक बात जो निरंतर है वह है हर काम मे अपना 100 प्रतिशत देना जो उनके कार्यों व कार्यस्थल में झलकता है,चाहे वह आफिस वर्क में कार्यों को मैनेज करना हो या ग्राउंड जीरो पर टीम को लीड करना हो,वह हर जगह युद्धस्तर की तैयारियों से उतरते है यह उनकी आदत में शामिल है,पता नही,किन्तु उनकी इस शैली से उनके साथी कार्मिक व अधीनस्थ सदैव प्रेरित जरूर रहे है। कांवड़,चारधाम, कोई बड़ा आयोजन हो या कोई आपदा वह पग-पग, हर कदम-कदम, अपनी पुलिस फ़ोर्स के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ग्राउंड पर खड़े नजर आए, एक मुखिया की जिस वक्त जो भूमिका जरूरी रही उनके द्वारा हर वह भूमिका बखूबी निभाई गयी।

उनके द्वारा अपने जीवन के दो दशक खाकी की निष्ठ व सहयोगी,अपराध को काबू करने में सक्षम, ‘सेफ एनवायरनमेंट, लोकैलिटी एंड सिटी फ़ॉर सिटीजन’ जैसे पैमानों पर बखूबी खरे उतरने में बिताए, किन्तु उनके जीवन का नया अध्याय व यू कहें खाकी का एक नया अध्याय तब शुरू हुआ जब उनके द्वारा ‘खाकी में इंसान’ अपनी प्रसिद्ध लेखनी से खाकी के मायने ही बदल दिए। उस किताब से पहले जो खाकी पहने ख़ाकीवालो को देखता था वह मात्र अपना रक्षक खड़ा है, समझता भर था,किन्तु ‘खाकी में इंसान’ में उस खाकी को रंग,रूप व भाव मे पिरोने का काम बखूबी कर दिखाया। यह कहना आज बिल्कुल गलत नही होगा कि उनकी हर एक पंक्ति से खाकी पहने 24*7 हमारी सुरक्षा में खडे इंसान को देख हम बतौर आम इंसान समझ पाए कि खाकी पहने इंसान में भी भाव है, कर्तव्यबोध,साहस बनाये रखने के साथ वह भी दर्द, पीड़ा, थकान महसूस करता है। गलतियां होने का डर खाकी में भी होता है किंतु उन गलतियों को सुधारने का साहस भी ख़ाकी में होता है। अपनी पुस्तक में खाकी का चित्रण व एक खाकी के द्वारा समाज मे एक सकरात्मक छवि बनाने को की जाने वाली हर कोशिश को वह अपने शब्दों के जरिये उकेरने में सफल रहे। उनके कार्यकाल के एक बेस्ट फेज प्रदेश के लॉ एंड आर्डर को बनाये रखने को उनके व उनकी टीम द्वारा किया गया कार्य भी रहा जहां उनके द्वारा सभी अपराधों की बारीक समीक्षा व उनको अंजाम तक पहुँचाने की उनकी जिद ने उनको पुनः काबिल अधिकारियों की श्रेणी में ला खड़ा किया। वह कार्यक्षेत्र में जितना हर चुनौती से लड़ने में सफल बने रहे उतना ही वह किताब, अकादमिक कार्यों में भी अग्रिम पायदान पर रहे। उनकी बेजोड़ लेखनी ने उन्हें बेहतरीन लेखक के तौर पर पहचना दिलाई तो वहीं खेल जगत में उनका बैडमिंटन जैसे खेल के प्रति रुझान जगजाहिर है।उनके द्वारा प्रदेश के लोगो के लिए मैराथन का आयोजन करवाना भी उनकी सकारात्मक पहल में से एक है।

वर्ष 2020 वह वर्ष था जब पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी द्वारा उनके कंधो पर प्रदेश के पुलिस मुखिया की जिम्मेदारी सौपीं गयी। दौर उस समय कोरोना का था,प्रथम चरण खत्म हो चुका था लॉक डाउन तकरीबन तकरीबन न के बराबर था, किन्तु एतिहात जरूरी थी जिसे उनके व उनकी टीम द्वारा कुशलता से लागू करवाया गया। इस दौरान उनके कार्यकाल में कोरोना का द्वितीय चरण आया,जो प्रथम चरण की तरह पुनः पूरी वेग से उतरा और इस मर्तबा प्रदेश में अस्पतालों, दवाईयों, ऑक्सीजन सिलिंडर की कालाबाजारी जैसे अपराध भी साथ लाया,किन्तु उनके नेतृत्व में उत्तराखंड पुलिस द्वारा न सिर्फ उक्त कालाबाजारी पर कड़ा लगाम लगाया बल्कि देवदूत बनकर परिवार के होते हुए भी ‘अनाथ शव’ की तरह अस्पतालों में पड़े शवो को ‘मिशन हौसला’ के बूते खाकी जैसे वीर सपूतों के कंधे अंतिम विदाई भी दिलाई। इस दौरान कई खाकी योद्धा खुद भी घायल हुए,कई ने प्राण भी त्यागे किन्तु अडिगता का वह क्रम खाकी ने रोका नही, और आखिर तक ‘मित्रता,सेवा व सुरक्षा’ के असल मायने क्या होते है वह सिद्ध करके दिखाया।

डीजीपी अशोक कुमार के स्वर्णिम कार्यकाल में जो एक अध्याय और शामिल है वह है आपरेशन मुक्ति: भिक्षा नही,शिक्षा दे’ उनके द्वारा इस मुहिम से न सिर्फ प्रदेश से भिक्षावृत्ति को खत्म करने को बेजोड़ कदम उठाए बल्कि बचपन मे खेलने की उम्र में भिक्षा का कटोरे थामे बच्चो को शिक्षा के मंदिर तक पहुँचाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने इस अभियान को सफल बनाने को आम जनता को सबसे अहम कड़ी माना व स्वयं सेवी संस्थाओं, जागरूकता अभियान के बूते इसे मजबूती प्रदान की।

उनके द्वारा बतौर महानिदेशक पद संभालने के साथ ही अपनी टीम को अपना व सम्पूर्ण खाकी बल का एक लक्ष्य साधते हुए कार्य करने को प्रेरित किया गया। उनके द्वारा अपनी टीम को ड्यूटी के दौरान उत्तराखंड पुलिस जिस व्यवहार के लिए जानी जाती है वह गुण ‘मित्रता, संवेदनशीलता’ को साथ लेकर कार्यस्थल पर उतरने को कहा, जो अगले 3 वर्षो में उनके कार्यकाल के दौरान खाकी में नज़र भी आया। उनके सभी पुलिस कप्तानों द्वारा अपनी अपनी टीम की कार्यशैली में पीड़ित केंद्रित पुलिसिंग को बढ़ावा दिया गया,जिसका परिणाम यह है कि आज प्रदेश की जनता खाकी तक पहुँचने में हिचकती नही,आम जनता की पहुंच आज खाकी तक आसान है। डीजीपी अशोक कुमार द्वारा अपनी टीम से आवाहन किया जाता रहा है कि हम जिनके लिए है उनमें हमारी लिए विश्वास होना चाहिए, वह हम में मित्र को ढूंढने चाहिए। खौफ अगर हो तो वह अपराधियों में हो, खाकी से हो,गलत करने के लिए हो।

उनके कार्यकाल में कोरोना के दौरान कांवड़ यात्रा का सकुशल संचालन,कोरोना में ही कांवड़ यात्रा का सफल आयोजन, कई रेस्क्यू आपरेशन, कई मुहिम को बखूबी लीड करना उनके बेस्ट वर्कआउट में रहा। डीजीपी अशोक कुमार की कार्यशैली का एक तरीका यह भी है कि वह हर समस्या को बारीकी से सुनते है व उनसे निराकरण को हर सलाह व सुझावों पर गौर जरूर करते है,जो उनकी कुशल,समझदार पुलिस मुखिया के तौर पर स्थापित करता है। बीते कुछ समय मे प्रदेश में बढ़ते साइबर हमलों पर वह खासतौर पर मुखर हुए है,उनके कार्यकाल के दौरान उनका कई मर्तबा साइबर अपराधियों से सामना हुआ,जिसका जिक्र उनके द्वारा ‘साइबर एनकाउंटर्स’ अपनी किताब में भी किया गया है,हालांकि अब साइबर अपराधी घर के अंदर पर्सनल स्पेस तक घुसे आये है जिनसे निबटने को बतौर डीजीपी उनके द्वारा कई साइबर एक्सपर्ट्स से तकनीकी सहायता, बेस्ट टीम खड़ी करने, आम जनता के लिए जागरूकता कार्यक्रम जैसे कदम उठाए है,जो सराहनीय रहे। उनके द्वारा 34 साल व 3 साल बतौर डीजीपी के अपने कार्यकाल में खाकी को एक नई पहचान दिलाई, खाकी में सहजता, चुनौतियों से लड़ने व जीतने का हौसला, कठिन परिश्रम, साहस, जोश, टीम वर्क, सभी को साथ लेकर चलने के कुशल लीडर की खूबी सभी अपने कार्यकाल में बखूबी दिखाई है जिसकी बदौलत उन्होंने अपना नाम उत्तराखंड के सफल मुखिया के तौर पर सदैव के लिए अंकित करवा लिया है।

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