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ईद-उल-फितर का त्यौहार बंदों के लिए है कीमती तोहफा…..

ईद-उल-फितर पर विशेष

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(इमरान देशभक्त) ईद-उल-फितर मुसलमानों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है।मुस्लिम धर्म में मुकद्दस रमजान की महत्ता प्राचीन है और पाक रमजान के तीस रोजे रखने के बाद ईद-उल-फितर बंदों के लिए अल्लाह की तरफ से खास इनाम है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार रमजान हर साल का नवां महीना है और दसवां महीना सव्वाल है। इस महीने में दुनिया भर के मुसलमान रोजे रखते हैं तथा ईद-उल-फितर की नमाज अदा करते हैं। रमजान का पाक महीना अब मुकम्मल होने वाला है, तो ईद को लेकर मुस्लिम समाज के प्रमुख व्यक्तियों की ओर से पैगाम है कि ईद-उल-फितर का त्यौहार सादगी और सद्भाव पूर्ण वातावरण में मनाया जाए।महीने भर रात के आखिरी हिस्से सहरी से लेकर दिन के आखिरी हिस्से सूर्यास्त तक खाने-पीने, वासना, ईर्ष्या, झूठ, चुगली और क्रोध जैसी सभी बुराइयों से रुक कर अपने शरीर व मन मस्तिष्क के जंग को दूर करने की क्रिया वाला महीना ही रमजान कहलाता है। आध्यात्मिक रूप से रोजा एक तपस्या है, जिसमें वह भूका-प्यासा रहने के साथ-साथ अपनी तमाम ज्ञानेंद्रियों आंख, कान, नाक, जीभ, हा व पैर आदि पर पूर्णतया नियंत्रण रखता है।महीने भर इसी तपस्या का अभ्यास करके वर्ष भर एक नियंत्रित संतुलित जीवन व्यतीत करने का प्रयास ही रमजान है‌।रोजे का सामाजिक पहलू यह है कि रोजेदार रोजा की भूख-प्यास की हालत में गरीब लोगों की भूख-प्यास के दर्द को महसूस करें, जिससे गरीब लोगों की मदद के लिए भी प्रेरणा मिलती है, हालांकि रमजान के महीने में गरीबों की मदद करना ऐच्छिक नहीं, बल्कि अनिवार्य है।नगर के प्रसिद्ध समाजसेवी इंजीनियर मुजीब मलिक, वरिष्ठ पत्रकार जावेद साबरी, विधायक हाजी फुरकान अहमद, डॉक्टर नैयर काजमी, समाजसेवी मौफीक अहमद, शायर अफजल मंगलौरी, हाजी नौशाद अली, कुंवर जावेद इकबाल, हाजी सलीम खान एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य अनीस अहमद मुसलमानों से इस त्यौहार को सभ्यता, स्वच्छता, आत्मसम्मान, भाईचारा, प्यार-मोहब्बत, परस्पर सहिष्णुता और सबसे बढ़कर आत्म संयम के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि इस्लाम धर्म मानवता के उच्च आदर्शों पर आधारित धर्म है, जो हमें आपसी भाईचारा और एकता का संदेश देता है।पैगंबर इस्लाम की शिक्षाएं मानवता पर आधारित है, जो आपस में प्रेम करना, एक दूसरों की मदद करना, गरीब, मजलूम और असहायों की सहायता करना सीखाता है। बेसहारा और जरूरतमंद लोगों को भी ईद की खुशियों में शामिल करना इस्लाम का एक अहम् हिस्सा है।ईद से पहले-पहले उन लोगों की फितरे-जकात आदि से सहायता की जानी चाहिए, ताकि उन लोगों को भी ईद की खुशियों में शामिल होने का अवसर प्राप्त हो सके।हर ईद ना जाने कितने घरों को खुशियों से, दिलों को मोहब्बत से भर देती है और न जाने कितने पुराने झगड़ों को खत्म कर देती है।

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