दिल्ली

अरविन्द केजरीवाल जमानत से जनमत तक

ब्यूरो दिल्ली

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(ब्यूरो) दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति को अक्षय तृतीया के दिन जमानत के रूप में नवजीवन मिल गया। जमानत अंतरिम है और केजरीवाल को 2 जून को दोबारा अदालत के समक्ष समर्पण करना होगा, लेकिन इस बीच वे अपनी जमानत की अवधि में अठारहवीं लोकसभा के लिए होने वाले शेष चार चरणों के चुनाव में खुलकर और जमकर प्रचार कर पाएंगे। अरविंद केजरीवाल 50 दिन की जेल यात्रा कर आये। स्वाधीनता से पहले जेल यात्राओं को एक तरह का बलिदान माना जाता था। आजादी के बाद जेल यात्राओं का रंग ही बदल गया। अब नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाते हैं। जनांदोलनों के चलते जेल जाने वालों की संख्या लगातार घटी है। हालांकि केजरीवाल आंदोलन की कोख से निकले नेता हैं, लेकिन हैं तो पुराने नौकरशाह, वे भाजपा के मोदी और शाह से टक्कर ले रहे हैं। क़ानून ने उनकी मदद की और अंतत: अंतरिम जमानत दिला दी। लोकसभा चुनाव के चार चरण अरविंद केजरीवाल के बिना सम्पन्न हो गए। विपक्षी गठबंधन को केजरीवाल से जो लाभ मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिल पाया। लेकिन जमानत पर आने के बाद वे अगले बीस दिन भाजपा सरकार को चुनौती देने का काम करेंगे। उन्होंने शराब घोटाले में उलझने के बाद भाजपा के खिलाफ कमर कस ली थी। केजरीवाल और उनकी पार्टी की हैसियत इस समय कांग्रेस को छोड़ दीगर क्षेत्रीय दलों से कहीं ज्यादा है। उनकी अकेली ऐसी पार्टी है जिसकी एक से अधिक राज्यों में सरकारें हैं। आम आदमी पार्टी को केजरीवाल एंड कम्पनी दिल्ली से बाहर पहले पंजाब तक ले गयी और बाद में उसने गोवा, गुजरात में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और अब आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा को अपदस्थ करने के महाअभियान में शामिल है। केजरीवाल अपनी अंतरिम जमानत का इस्तेमाल जनमत को विपक्ष के पक्ष में बनाने के लिए कर सकते है। वे मुख्य वक्ता हैं। दिल्ली में उनकी पार्टी की राज्य सरकार है। सबसे बड़ी बात तो ये हैं कि वे कंगाल नहीं हैं, उनके पास चुनाव लड़ने के लिए भरपूर धन दौलत है। पंजाब में भी उनकी सरकार है। कुल मिलाकर अब विपक्ष के पास राहुल हैं, अखिलेश हैं और केजरीवाल भी। ये तिकड़ी भाजपा का खेल बिगाड़ने की कोशिशें कर रही है। केजरीवाल की रण में वापसी के चलते चुनाव के शेष चार चरण और रोचक होने वाले हैं। अभी लगभग 260 सीटों के लिए मतदान होना बाक़ी है। इन सीटों में से अरविंद केजरीवाल कितनी सीटों को प्रभावित कर सकते हैं कहना कठिन है।

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