जनमानस का कानूनी अधिकारों को जानना बेहद ज़रूरी: हिमांशु सरीन एडवोकेट
रजत चौहान प्रधान सम्पादक
हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रजत चौहान) हरिद्वार। समय के साथ भारत में बदली गयी आपराधिक न्याय प्रणाली के चलते आम जनमानस को अपने कानूनी अधिकारों के साथ साथ नए कानून को जानना बेहद ज़रूरी है। पुलिसिया कार्यवाही में विफल लोगों के लिए नए कानून की कुछ विशेष बातें उन्हें सफल बनाने का काम करेंगी। हालांकि बदले गए तीन मुख्य कानून 01 जुलाई 2024 से लागू हो चुके है। शिकायतकर्ता द्वारा अपनी शिकायत लेकर थाने जाने पर पुलिस द्वारा एफ आई आर नही दर्ज करने जैसी समस्याओं का बेहतरीन समाधान नए कानून में समाहित है साथ ही अब पीड़ित या शिकायतकर्ता को केवल घटनास्थल के निकटवर्ती थाने में जाकर एफ आई आर दर्ज कराने की जगह कहीं से भी ज़ीरो एफआईआर कराए जाने की सहूलियत मिली है। नए कानून के मुताबिक कोई भी शिकायतकर्ता घटनास्थल के अलावा भी और बिना सीधे थाने जाए भी अपनी एफआईआर दर्ज कराने में सक्षम है। दरसल नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के अध्याय 13 की धारा 173 की उपधारा 01 में एफआईआर के बारे में बताया गया है की संज्ञेय अपराध किए जाने से संबंधित प्रत्येक इत्तिला, उस क्षेत्र पर विचार किए बिना जहां अपराध किया गया है, मौखिक रूप या इलेक्ट्रॉनिक संसूचना द्वारा पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को दी जा सकेगी। अर्थात किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को कहीं से भी दी जा सकती है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दी जाने वाली सूचना पर 3 दिन में कभी भी हस्ताक्षर करने ज़रूरी है। मजिस्ट्रेट के समक्ष रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए करने वाले आवेदनों में अब शपथपत्र लगाया जाना जरूरी हो गया है। वहीं महिलाओं से संबंधित कुछ अपराध किये जाने अथवा किये जाने का प्रयत्न का अभिकथन किया गया है वहां ऐसी रिपोर्ट या तो किसी महिला पुलिस अधिकारी अथवा महिला अधिकारी द्वारा लिखी जाएगी। साथ ही उपधारा 01 के खंड क एवं ख के अनुसार रिपोर्ट दर्ज कराने वाला व्यक्ति के स्थाई या अस्थाई रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से निःशक्त होने की स्थिति में रिपोर्ट लिखने वाले अधिकारी को उस व्यक्ति के निवास या किसी वैकल्पिक सुगम स्थान पर यथास्थिति अनुसार वहां जाकर शिकायतकर्ता या पीड़ित की रिपोर्ट लिखी जाएगी और रिपोर्ट लिखे जाने की वीडियो फ़िल्म भी तैयार की जाएगी। बदली कानून प्रक्रिया में पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज करने के बाद उसमें अन्वेषण किया जाना है या नही अपने उपपुलिस अधीक्षक की अनुमति से पुलिस अधिकारी 14 दिन की प्रारंभिक जांच कर करने की शक्ति पुलिस को प्राप्त हुई है। हालांकि ऐसा पुलिस अधिकारी केवल 03 से 07 वर्ष तक कि सजा वाले मामलों में ही कर सकेगा। बहरहाल यह देखना अभी बाकी है की इन शक्तियों का इस्तेमाल पुलिस द्वारा किस प्रकार से किया जाएगा। भारत सरकार द्वारा कानूनी प्रक्रिया बदलने के साथ ही भारतीय दण्ड संहिता के स्थान पर लाये गए भारतीय न्याय संहिता में धाराओं की संख्या में परिवर्तन करते हुए इस संहिता में बालक, क्रूरता की परिभाषा सहित धारा 111, 112 व 113 के अंतर्गत संगठित अपराध, छोटे संगठित अपराध व आतंकवादी कृत्य जैसी धाराओं को नया जोड़ गया है। अंतिम कानून बदलते हुए सरकार द्वारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के स्थान पर लागू की गई भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 को लागू किया गया है। हालांकि इसके अंतर्गत कुछ अधिक परिवर्तन न करते हुए साक्ष्यों के डिजिटलीकरण और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर अधिक जोर दिया गया है, साफ है कि सरकार की मंशा कानून को नए के साथ साथ आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर भी जोर दिया गया है। साक्ष्य संकलित करने के लिए मोबाइल जैसे इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों के इस्तेमाल करने के विशेष प्रावधान दिए गए है। आपराधिक न्याय प्रणाली के तीनों मुख्य कानून के बदले जाने से आमजनमानस को जहां एक तरफ सुलभता प्रदान की गई है वहीं किसी भी कार्यवाही की समय सीमा तय करने के साथ साथ सरकार द्वारा पारदर्शिता और शीघ्र निस्तारण पर भी जोर दिया गया है। हालांकि लाखों की संख्या में विचाराधीन चल रहे मामलों में यह कानून प्रभावी नही होंगे लेकिन 01 जुलाई 2024 से घटित होने वाले सभी मामले नए कानून के तहत दर्ज व संचालित किए जा रहे है।
पुलिस अधिकारी सहित अन्य विभागीय अधिकारी व अधिवक्ता वर्ग को भी कानून के लागू होने से पहले इसकी ट्रेनिंग दी जा चुकी है, जिसे की पुलिस व अन्य सामाजिक लोगों द्वारा जन जन तक पहुचाये जाने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में शुरुवाती दौर में कुछ असमंजस की स्थिति पैदा ही सकती है जिसे विभिन्न उच्च न्यायालयों और देश के सर्वोच्च न्यायालय से पारित होने वाले विभिन्न आदेशों के अनुक्रम समें दूर किया जा सकेगा। जबकि पुराने कानून की प्रभाविता को शून्य होने में अभी लगभग एक दशक से अधिक का समय लग सकता है। जिससे न्यायालय में दोनो ही कानून अभी अपने अपने चलन में सक्रिय रहेंगे।
लेख: अधिवक्ता हिमांशु सरीन, जिला एवं सत्र न्यायालय