हरिद्वार

श्रावणी पर्व पर शांतिकुंज के साधकों ने भारत को विकसित करने का संकल्प लिया

रवि चौहान हरिद्वार संवाददाता

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रवि चौहान) हरिद्वार। श्रावणी पर्व के अवसर पर अखिल विश्व गायत्री परिवार के लाखों साधक एवं जीवन विद्या के आलोक केन्द्र देवसंस्कृति विवि के युवाओं ने भारत को विकसित बनाने का संकल्प लिया। साथ ही युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्यश्री के युग निर्माण अभियान के संदेश को विस्तार करने के उद्देश्य से श्रावणी पर्व पर शांतिकुंज अधिष्ठात्री स्नेहसलिला श्रद्धेया शैल दीदी से रक्षा सूत्र धारण किये। तो वहीं गुरुधाम की बहिनों ने गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या जी को राखी बाँधीं। उन्होंने सभी को पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ दीं। अपने संदेश में शांतिकुंज अधिष्ठात्री स्नेहसलिला श्रद्धेया शैल दीदी ने कहा कि रक्षाबंधन भाई-बहन के स्नेह और प्यार को अटूट बनाता है। यह भाई-बहन रिश्ते की गहराई और विश्वास को संजोने का एक खास तरीका है। उन्होंने युवाओं से भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए अपनी प्रतिभा एक अंश भारत माता के चरणों में अर्पित करने हेतु आवाहन किया। कहा कि निःस्वार्थ भाव से सेवा कार्य करने से ईश्वर की शक्ति भी सहयोग करती है। अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख एवं देवसंस्कृति विवि के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि राखी के बंधन व प्रेम ने अनगिनत शत्रुओं को मित्र बनाकर परस्पर सुख-दुःख झेलने को विवश किया है। हमारे सैनिकों की सुरक्षा में जुटे होने के कारण ही हम सुरक्षित हैं। हम सबको भी उन सैनिकों की सुरक्षा के लिए प्रार्थनाएँ करनी चाहिए। इससे पूर्व शांतिकुंज के मुख्य सभागार में ब्राह्ममुहूर्त में सामूहिक हेमाद्रि संकल्प सम्पन्न हुआ। दसस्नान द्वारा अन्तःकरण पर जमे बुराइयों को धोने तथा यज्ञोपवीत परिवर्तन से उसके नवगुणों को पुनः-पुनः धारण करने के लिए संकल्पित हुए। इसका वैदिक कर्मकाण्ड संस्कार प्रकोष्ठ के आचार्यों ने सम्पन्न कराया। शंातिकुंज की ब्रह्मवादिनी बहिनों ने ख्स्त्र कुण्डीय यज्ञशाला में गायत्री महायज्ञ में विश्व कल्याण एवं भारत को विकसित बनाने के लिए विशेष वैदिक मंत्रों के साथ यज्ञ सम्पन्न कराया। सायंकाल भव्य दीपमहायज्ञ भी सम्पन्न हुआ। वहीं शांतिकुंज स्थित शिवालय में रुद्राभिषेक कराया गया।
वहीं दूसरी ओर श्रावणी पर्व पर विभिन्न क्षेत्रों से आये लोगों में शांतिकुंज स्थित उद्यान विभाग ने तुलसी, बेल, आदि एक हजार से अधिक पौधे तरुप्रसाद के रूप में निःशुल्क बाँटे।

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