
हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रजत चौहान) हरिद्वार। हरिद्वार की पहचान एक वक्त धर्मशालाओं, घाटों और मंदिरों की तीर्थनगरी रूप में थी, लेकिन भूमियों के बढ़ते व्यावसायिक उपयोग के चलते विगत चार दशकों में धर्मनगरी का स्वरूप तेजी से बदल गया। जिसके चलते आज हरिद्वार तीर्थनगरी किसी व्यावसायिक नगर जैसी ही हो गयी है। जानकारी के अनुसार 1986 में तत्कालीन यूपी सरकार ने धर्मनगरी के स्वरूप को अक्षुण्ण रखने और क्षेत्र के नियोजित विकास के लिए हरिद्वार ऋषिकेश के 30 कि०मी क्षेत्र को समाहित करते हुए हरिद्वार विकास प्राधिकरण का गठन कर सीनियर आईएएस हरिश्चंद्र श्रीवास्तव को इसका उपाध्यक्ष बनाया था। लेकिन धर्मनगरी में अवैध निर्माण नहीं रुके। बाद के वर्षों में तो इसके कारण हविप्रा का नाम ही सफेद हाथी पड़ गया। हालांकि उत्तराखंड बनने के बाद प्राधिकरण का विस्तार हुआ और रुड़की भी इसमें शामिल हुआ। उत्तराखंड में हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण ने विकास के अनेक कार्य किए जो अब भी गतिमान हैं लेकिन अवैध निर्माणों पर रोक नहीं लग सकी। लगातार हो रहे व्यावसायिक निर्माणों के चलते अब धर्मनगरी पश्चिमी संस्कृति के प्रतीक होटलों की नगरी में तब्दील हो गई है। धर्मनगरी की पहचान रही पुरानी और धार्मिक सम्पत्तियों को धराशाई कर उनके स्थान पर होटलों को खड़ा करने का काम अब भी निरंतर जारी है।
धर्मनगरी में होटलों के कारण व्यावसायिक प्रदूषण और शोर-शराबा बढ़ने से शहर की पुरानी आबादी पलायन को मजबूर हो रही है। हरिद्वार शहर का पुराना रिहायशी क्षेत्र श्रवणनाथ नगर कभी का होटल नगरी में तब्दील हो चुका है। रानीपुर मोड़ से लेकर सप्तऋषि तक हरिद्वार होटलों से पट गया है। एक वक्त हरिद्वार में रात्रि विश्राम पाप माना जाता था लेकिन अब तो जिस हरकी पैड़ी को केंद्र में रखकर कभी हरिद्वार की पवित्रता के नियम-उपनियम बनाए गए वह भी विलासिता के प्रतीक होटलों से घिर गई है। वहीं अवैध निर्माणों को रोकने के लिए प्राधिकरण के पास पूरा रुल मैन्युअल मौजूद है। नगरीय क्षेत्र में गंगा किनारे तो एनजीटी ने भी निर्माण पर रोक लगा रखी है। लेकिन इसके बावजूद अवैध निर्माण हो रहे हैं। पुरानी आबादी के क्षेत्र रामघाट में गंगा किनारे एक बड़ा निर्माण चर्चा में बना हुआ है। धर्मनगरी में चर्चा है कि हरिद्वार में बढ़ते होटलों के निर्माण नियमों का तो उल्लंघन कर रहे है, साथ ही धर्मनगरी की सूरत भी बिगड़ रहे है।