
हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) देहरादून। भारत योगियों और तपस्वियों की भूमि है इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। पतंजलि ने “चित्त की वृत्तियों के निरोग” को योग कहा है, व्यास जी ने समाधि को ही योग माना है, योगवासिष्ठ के अनुसार योग वह युक्ति है जिसके द्वारा संसार सागर से पार जाया जा सकता है। योग की परंपरा अत्यंत प्राचीन है और इसकी उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है अर्थात प्राचीनतम ग्रंन्थों से काफी पहले योग का जन्म हो चुका था। योग विद्या में शिव को “आदि योगी” तथा “आदि गुरु” माना जाता है।
भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि मुनियों से ही योग का प्रारंभ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से स्थापित किया। इसके पश्चात् पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप देखकर इसका विस्तार किया। योग से संबंधित सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राप्त वस्तुएं हैं। जिनकी शारीरिक मुद्राएं और आसन उस काल में योग के अस्तित्व के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। योग के इतिहास पर यदि हम दृष्टिपात करें तो इसके प्रारंभ या अंत का कोई प्रमाण नहीं मिलता लेकिन योग का वर्णन सर्वप्रथम वेदों में मिलता है और वेद सबसे प्राचीन साहित्य माने जाते हैं। योग को विज्ञान कहा जाता है और हमारे पौराणिक ऋषि मुनि ही विश्व के प्रथम वैज्ञानिक थे। उन्होंने ही अपने अंदर बहुत खोजबीन कर विभिन्न चक्रों की स्थापना की जिसके द्वारा ब्रह्मांड का कोई भी कार्य मनुष्य के लिए असंभव नहीं रहा। इन्हीं चक्रों की जागृति से मनुष्य में अनेकों दिव्य शक्तियों का वास हो जाता है। आधुनिक काल में भी योग को बहुत महत्व दिया जाने लगा है शारीरिक स्वास्थ्य, मन की शुद्धता, व अध्यात्म बल के द्वारा मनुष्य के जीवन में योग के महत्व को पुनः जीवंत किया जा रहा है। योग ऐसी प्रक्रिया है जिससे शारीरिक बल तो बढ़ता ही है आयु में भी वृद्धि होती है साथ ही साथ इसके जरिए हम ध्यान, समाधि, और मोक्ष तक पहुंच सकते हैं। योग शब्द हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में ध्यान प्रक्रिया से संबंधित है। योग भारत से बौद्ध पंथ के द्वारा चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्वी एशिया और श्रीलंका में भी फैला। और इस समय सारा विश्व इससे परिचित हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से भारत योग गुरु तो बन ही गया अब विश्व गुरु बनने की राह पर अग्रसर है। भारत के अनेक योगियों ने समय-समय पर विश्व को योग के विषय में बताते हुए मनुष्य जीवन में इसकी उपयोगिता को समझाया। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के धर्म संसद में अपने ऐतिहासिक भाषण में योग का उल्लेख कर सारे विश्व को योग से परिचित कराया। महर्षि महेश योगी, परमहंस योगानंद, रमण महर्षि, जैसे कई योगियों ने पश्चिमी दुनिया को अपने योग बल से प्रभावित किया। और धीरे-धीरे योग एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया के रूप में दुनिया भर में स्वीकार किया जाने लगा।