देहरादून

गोवर्धन पूजा, भक्ति की शक्ति और अहंकार की हार: श्वेता शर्मा

राजेश कुमार देहरादून प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) देहरादून। श्वेता शर्मा नेशनल सेक्रेट्री, सेंटर फॉर सनातन रिसर्च ने हरिद्वार की गूंज से खास बातचीत में बताया कि सनातन धर्म का हर त्योहार अपने आप में एक अलग महत्व रखता है। हर पर्व के पीछे केवल परंपरा नहीं, बल्कि गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा होता है। ऐसा ही एक पर्व है गोवर्धन पूजा, जो दीपावली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। ईश्वर की सच्ची आराधना वही है, जिसमें प्रकृति, जीव और जीवन—तीनों का आदर हो। कहते हैं, जब वृंदावन में लोग वर्षा के देवता इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे थे, तब बाल श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि असली पालन तो गोवर्धन पर्वत, गौमाता और खेत-खलिहान करते हैं। गोवर्धन पर्वत के द्वारा ही हमारा जीवन यापन होता है, वही बृजवासियों के असली देवता हैं, इसलिए हमें उन्हीं की पूजा करनी चाहिए। लोगों ने उनकी बात मान ली। ढेर सारे भोग-प्रसाद बनाए गए और स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन के रूप में सारे भोग प्रसाद को ग्रहण किया। इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा बरसाई। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सात दिन तक वृंदावन के लोगों व गौओं की रक्षा की। अंत में इंद्र ने अपनी गलती स्वीकार की और भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हुए। उसके उपरांत सारे बृजवासियों ने भगवान श्रीकृष्ण के लिए तरह-तरह के पकवान और मिष्ठान बनाकर उनका सत्कार किया, और माता यशोदा ने अपने हाथों से भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग खिलाए। तभी से इस दिन भगवान को 56 भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है। सत्य ही है कि भक्ति में विनम्रता और कृतज्ञता सबसे बड़ी शक्ति होती है। वृंदावन में आज भी यह पर्व बड़ी श्रद्धा और भव्यता से मनाया जाता है। प्रातःकाल से ही मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की झांकी सजाई जाती है। ठाकुर जी को अन्नकूट का भोग लगाया जाता है, जिसमें सैकड़ों प्रकार के व्यंजन—पूड़ी, खीर, सब्जी, दाल, मिठाइयाँ और फल सजाए जाते हैं। भक्त गोवर्धन महाराज की जय के नारे लगाते हुए परिक्रमा करते हैं। गायों को सजाया जाता है, उनके गले में फूलों की मालाएँ और घुँघरू बाँधे जाते हैं। बच्चे गोबर से बने गोवर्धन पर्वत के चारों ओर दीप जलाते हैं और सब मिलकर आरती करते हैं। चारों ओर भक्ति, संगीत और प्रसाद की सुगंध से वातावरण पवित्र हो उठता है। गोवर्धन पूजा का असली अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं है, यह प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता का उत्सव है। जब हम धरती की, गाय की और अन्न की पूजा करते हैं, तो यह हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन इन्हीं से जुड़ा है। श्रीकृष्ण ने यही संदेश दिया था भक्ति केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि कर्म और सेवा में है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन गोवर्धन की पूजा करता है और अन्नकूट का दर्शन करता है, उसके घर में सदा समृद्धि बनी रहती है और माता लक्ष्मी का वास होता है। जब मनुष्य अहंकार छोड़कर कृतज्ञ बन जाता है, तब स्वयं भगवान उसके रक्षक बन जाते हैं। सनातन धर्म की यही विशेषता है यहाँ पूजा केवल देवता की नहीं, बल्कि सृष्टि की होती है। हर पर्व में प्रकृति का महत्व है प्रकृति के साथ तालमेल ही सच्ची पूजा है। हर जीव, हर प्राणी की रक्षा मनुष्य का कर्तव्य है। गोवर्धन पूजा इसी भावना का सजीव प्रतीक है जहाँ भक्ति में प्रेम है, सेवा में ईश्वर है, और हर दीपक में भगवान के प्रति श्रद्धा की ज्योति जलती है।

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