हरिद्वार की गूंज (24*7)
(वेद प्रकाश चौहान) हरिद्वार। मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शांतिकुंज स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय एवं शांतिकुंज पधारे। यहां परिवार सहित उन्होंने भारतीय सनातन एवं ऋषि परंपरा आधारित शांतिकुंज के आध्यात्मिक दिनचर्या को अपनाया। अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक एवं युग निर्माण योजना के उद्घोषक वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के जीवन दर्शन को उन्होंने श्रोताओं के समक्ष अपने अनुभव के साथ रखा। मुख्य कार्यक्रम मृत्युजंय सभागार में दीप प्रज्जवल, देवपूजन और देव संस्कृति विवि. के कुलगीत एवं स्वागत के साथ प्रारभ हुआ। शांतिकुंज स्वर्ण जयंती वर्ष व्याख्यान माला के अंतर्गत परम पूज्य गुरुदेव का जीवन दर्शन विषय पर परिजनों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि यहां आने का अवसर मुझे मिला। मैं गायत्री परिवार का सदस्य के रूप में आया हूं, यहां आकर श्रद्धा-प्रसन्नता से भरा महसूस कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि हम उस परंपरा से आते है जहां हजारों वर्ष पहले ऋषियों-मुनियों के तप से भारत विश्वगुरु बना। जहां वसुधैव कुटुंबकम्, आत्मवत्-सर्वभूतेषू का भाव परिलक्षित होता है। उन्होंने परम पूज्य गुरुदेव को समर्पित करते हुए अपने जीवन के कुछ घटनाओं को सभी श्रोताओं के साथ साझा किया। उन्होंने कहा कि मेरे जीवन का सौभाग्य उस क्षण प्रस्फूटित हुआ जब मैनें परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का प्रथम दर्शन किया। सन् १९८० की घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा कि होशांगाबाद के सेठानीघाट पर गुरुदेव से दीक्षा संस्कार लेते समय गुरुदेव की चमकती हुई आंखें आज भी उसी तरह नजर आती है और मुझे सही रास्ता दिखाने में सतत मदद करती हैं, मैं जो कुछ भी श्रेष्ठ कर पा रहा हूं वह परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से कर पा रहा हूं। उन्होंने गुरुदेव के विराट व्यक्तित्व एवं प्रेरणा भरे जीवन को बड़े सरल शब्दों में गायत्री परिजनों के समक्ष रखा। उन्होंने बताया कि युगऋषि द्वारा चलाए गए सप्त आंदोलन साधना, शिक्षा, पर्यावरण, स्वावलंबन, नारी जागरण, व्यसन मुक्ति एवं आदर्श ग्राम को मध्य प्रदेश शासन में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लागू किया साथ ही इसका प्रत्यक्ष लाभ वहां की जनता को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जनता की सेवा ही मेरी साधना है। उन्होंने गायत्री परिवार स्वंय सेवकों के द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रसन्ना की। उन्होंने कहा कि विश्व का शाश्वत शांति की ओर मार्गदर्शन भारत करेगा जिसमे अखिल विश्व गायत्री परिवार जैसे आधात्मिक-सामाजिक संस्थानों का महत्वपूर्ण योगदान होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने माननीय मुख्यमंत्री का स्वागत करते हुए कहा कि आज अत्यंत सौभाग्य का क्षण है कि एक ऐसे व्यक्ति से युगऋषि गुरुदेव के जीवन को सुनने को अवसर मिला है, जो स्वयं गुरुदेव के दिखाए रास्ते पर चलकर सामाजिक जीवन की उत्कृष्टता को हासिल किए। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जब धर्म एक व्यापार बन गया है, लोग भगवान का मूल्य इस आधार पर तय करते है कि कौन कितनी मनोकामना पूर्ण करता है लोग भ्रमित है। ऐसे समय में मानवता का सौभाग्य जगाने युगऋषि आए। युगऋषि गुरुदेव से जुड़ने का सौभाग्य जन्म-जन्मातरों के पुण्यों के संग्रहित होने पर मिलता है। उनकी चेतना का प्रतिनिधित्व करने, उनकी युग निर्माण योजना में सम्मिलित होने का सौभाग्य हमें मिला है। बल साधन का नहीं साधनाओं में है, मनुष्य की भावनाएं महत्वपूर्ण है। युगऋषि के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने पर मनुष्य में देवत्व का उदय एवं धरती पर स्वर्ग का अवतरण सुनिश्चित हैं। कार्यक्रम के अंत में कुलपति एवं प्रतिकुलपति ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को गायत्री स्मृति चिन्ह, गंगाजल एवं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य का साहित्य देकर सम्मानित किया। मुख्यमंत्री एवं मंचासीन अतिथियों ने देसंविवि के डिग्री हो पाना तो पांच वृक्ष लागाना योजना, पुनीत गरुवंश द्वारा लिखित प्रज्ञा पुराण परिवार खंड ३ एवं दिलीप सराहा द्वारा लिखित ग्रामीण उद्यमिता प्रबंधन पुस्तक का विमोचन किया। इस अवसर पर कुलपति शरद पारधी, कुलसचिव बलदाऊ देवांगन, शांतिकुंज कार्यकर्त्ता, मीडियाकर्मी, प्रशासनिक अधिकारी, शांतिकुंज एवं देसंविवि के स्वयंसेवक कार्यकर्त्ता सहित समस्त शिक्षकगण एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे। इससे पूर्व बुधवार रात्रि में माननीय मुख्यमंत्री का आगमन हुआ। उनका स्वागत प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने पुष्प गुच्छ अर्पण कर किया। विद्यार्थियों ने पुष्प वर्षा कर अभिनंदन किया। माननीय मुख्यमंत्री ने रात्रि विश्राम विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में किया। गुरुवार की सुबह उन्होंने परम पूज्य गुरुदेव को समर्पित गुरुद्वारे के आध्यात्मिक दिनचर्या का पालन किया। प्रातः काल योग-साधना, संध्या वंदन कर देसंविवि के ऊर्जा और श्रद्धा के केंद्र माने जाने वाले प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर के पवित्र प्रांगण में सपत्नीक रुद्राभिषेक कर विश्वकल्याण की प्रार्थना की। यहां उन्होंने मोलश्री का पौधा भी लगया। तत्पश्चात् उन्होंने देसंविवि स्थित एशिया के प्रथम बाल्टिक सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र, स्वावलंबन आधारित विभिन्न प्रकल्पों का अवलोकन किया। शांतिकुंज पहुंचकर उन्होंने परम पूज्य गुरुदेव एवं माताजी की समाधि स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित किया। साथ ही १९२६ से प्रज्जवलित अखण्ड दीपक एवं गुरुदेव-माताजी के पावन कक्ष का दर्शन कर आशीर्वाद लिया। मध्य प्रदेश के स्वयं सेवक कार्यकर्त्ताओं से भेंट वार्ता कर उन्होंने मध्य प्रदेश राज्य के विकास संबंधित कार्यों की चर्चा की। देसंविवि के कुलाधिपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या व श्रद्धेया शैल जीजी से भेंट कर उत्तराखंड राज्य के विकास, युवा एवं महिला जागरण विषय पर विचार-विमर्श किया।