हरिद्वार

नहाय खाय के साथ हुआ, छठ महापर्व की शुरुआत, कद्दू भात खाकर व्रतियों ने लिया संकल्प

रविवार को खरना की खीर खाने के बाद शुरू होगा, 36 घंटे का निर्जल उपवास

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रवि चौहान) हरिद्वार। भगवान भास्कर की आराधना के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शनिवार को नहाय-खाय से शुरू हो गया है। वहीं रविवार को खरना पूजन के साथ 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाएगा। सोमवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य और मंगलवार को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। छठ महापर्व को लेकर लोगों में खासा उल्लास है। तीर्थनगरी हरिद्वार के समस्त गंगा घाटों पर छठ पूजा तैयारियां को अंतिम रुप दिया जा रहा है। नगर निगम की ओर से भी घाटों पर अभियान चलाकर साफ सफाई की व्यवस्था को चाट चौबंद किया गया है। छठ व्रतियों को कोई परेशानी न हो इसका ख्याल रखा जा रहा है। इसके पूर्व नहाय-खाय को लेकर बाजारों में पूरे दिन चहल-पहल रही। लोगों ने पूजन सामग्री के अलावा कद्दू, मटर, धनिया पत्ता, साग, अगस्त के फूल, चना का दाल, चावल आदि की खरीदारी करते नजर आएं। लोक आस्था का महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल चतुर्थी में नहाय-खाय के शुरू होगा। आचार्य पंडित उद्धव मिश्रा ने पंचांगों के हवाले से बताया कि शनिवार को शोभन, रवि एवं सिद्ध योग के उत्तम संयोग में व्रती नहाय-खाय करेंगी। रविवार को रवियोग व सर्वार्थ सिद्धि योग में व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण करेंगी। उन्होंने कहा कि सोमवार को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के साथ सुकर्मा योग में अस्ताचलगामी सूर्य को एवं मंगलवार को त्रिपुष्कर एवं रवियोग का मंगलकारी संयोग में व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद चार दिवसीय महापर्व का समापन पारण के साथ करेंगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से चली आ रही है। आचार्य भोगेंद्र झा ने कहा कि छठ महापर्व के दौरान व्रती पर छठी मैया की कृपा बरसती है। छठ महापर्व खासकर शरीर, मन तथा आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार नहाय-खाय से छठ के पारण सप्तमी तिथि तक भक्तों पर छठी मैया की विशेष कृपा बरसती है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य को पीतल या तांबे के पात्र से अर्घ्य देने से आरोग्यता का वरदान मिलता है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। वरिष्ठ समाजसेवी एवं भाजपा नेत्री रंजीता झा ने कहा कि छठ महापर्व के पहले दिन में आज नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चासनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे संतान प्राप्ति को लेकर व्रती पर छठी मैया की कृपा बरसती है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा समाप्त हो जाते है। इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ जीवन के लिए छठ पर्व जरूरी है। मौसम में फास्फोरस की कमी होने के कारण शरीर में रोग (कफ, सर्दी, जुकाम) के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। प्रकृति में फास्फोरस सबसे ज्यादा गुड़ में पाया जाता है। जिस दिन से छठ शुरू होता है उसी दिन से गुड़ वाले पदार्थ का सेवन शुरू हो जाता है, खरना में चीनी की जगह गुड़ का ही प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही ईख, गागर एवं अन्य मौसमी फल प्रसाद के रूप प्रयोग किया जाता है। तीर्थनगरी में में घर से लेकर घाट तक सजकर तैयार है। रंगीन रोशनी से घाट जगमगा रहे हैंं और छठ गीतों से माहौल भक्तिमय बना हुआ है।
चार दिवसीय अनुष्ठान:
25 अक्टूबर : नहाय-खाय
26 अक्टूबर : खरना पूजन
27 अक्टूबर : शाम का अर्घ्य
28 अक्टूबर : सुबह का अर्घ्य

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