हरिद्वार

परिक्रमा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच की समसामयिक काव्य गोष्ठी

रवि चौहान हरिद्वार संवाददाता

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रवि चौहान) हरिद्वार। बीएचईएल के सैक्टर-चार स्थित सामुदायिक केन्द्र के सभागार में परिक्रमा साहित्यिक मंच की ओर से एक समसामयिक कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें नगर के अनेक लोकप्रिय कवियों ने अपनी-अपनी विधाओं‌‌ में काव्य पाठ करके श्रोताओं अनवरत तालियाँ व वाह-वाही लूटीं। देर शाम तक चली गोष्ठी में संस्था सचिव शशिरंजन समदर्शी ने गोष्ठी का संचालन करते हुए-रे पहलगाम तुम सोना मत जब तक ख़ूनी ज़िंदा है, आँखें सिन्दूरी बनी रहें, चहुँ ओर हो रही निंदा है पहलगाम की आतंकी घटना के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए आपरेशन सिंदूर का महिमामंडन किया तो वरिष्ठ कवि साधुराम पल्ल्व ने वर्मान अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य कर चलते चेतावनी दी’हालातों देख कर लगता यही क़यास, धीरे-धीरे जा रहे है विश्व युद्ध के पास। अरुण कुमार पाठक ने अपना प्रेरक गीत प्रस्तुत करते हुए कहा आँधियाँ कितनी भी आयें दीप तुम‌ बुझने न देना, ख्वाब को मंज़िल बनाना पर क़दम रुकने न देना।’ युवा जोश के कवि दिव्यांश ‘दुष्यंत’ की पीड़ा थी-‘अपनी काया से वस्त्र हटा अपने तन का प्रचार करो, इच्छा अपनी ही होती है, तुम करो शर्म या व्यापार करो’। गीतकार भूदत्त शर्मा ने गुन‌गुनाया ‘पाँव धरती पर धरो तो, धीर भी धरना प्रिये’, कंटकों के कोष में करुणा कभी नहीं होती।’ ‘ढूँढता है फिर वही मन, दिन सुहाने गाँव के’ कह कर पारिजात अध्यक्ष सुभाष मलिक ने ग्रामीण परिदृश्य प्रस्तुत किया। नीता नय्यर निष्ठा ने कहा-‘मुहब्बत की यही एक ख़ूबी है, कि ऐब उसमें कोई नज़र नहीं‌ आता। बंदना झा ने-‘मेरी बेटी कहती है मुझसे, माँ तुम तलवार चलाना सीखो’ सुना कर मातृशक्ति को प्रेरित किया तो आशा साहनी‌ ने-‘मैं कटीली झाड़ियों में चल रही हूँ हर क़दम, देखकर आँखें तुम्हारी क्यों नहीं होती हैं‌ नम’ के साथ नारी व्यथा को सामने रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वयोवृद्ध कवि ज्वाला प्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ ने गोष्ठी की समीक्षा के साथ ही अपना छंद बनकर देखो ऋषि-मुनि आप धुरंधर, आयेगा चलकर तब पास समन्दर’ सुनाकर सद्प्रेरित किया। बिजनौर से पधारे लोक कवि कर्म वीर सिंह ने चलो रे लगाओ पेड़ सभी, धरती को हरा-भरा कर दो’ के साथ पर्यावरण संरक्षण संदेश दिया। महेन्द्र कुमार ने कहा रावण के पुतला दहन से है क्या फ़ायदा, यदि मन के रावण को हमने जलाया नहीं, तो कुसुमाकर मुरलीधर पंत ने कहा कुछ नया अंदाज़ लेके हाथों-हाथ साज़ लेके चलते हैं महापुरुषों‌ की राह में डगर में।

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