लक्सर

सांस्कृतिक मूल्यों से मुंह न मोड़े: दिनेश सेमवाल

चमनलाल महाविद्यालय में तीन दिवसीय मानवाधिकार प्रशिक्षण कार्यक्रम

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(फिरोज अहमद) लक्सर/लण्ढौरा। चमनलाल महाविद्यालय, लण्ढौरा में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) नई दिल्ली के संपोषित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की विधिवत शुरूआत महाविद्यालय के प्रबंध समिति के अध्यक्ष पं0 राम कुमार शर्मा एवं कोषाध्यक्ष, प्रबंध समिति अतुल हरित के साथ मुख्य अतिथि दिनेश सेमवाल, प्रान्त कार्यवाहक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उत्तराखण्ड प्रान्त के नेतृत्व में ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुई। कार्यक्रम के आरंभ में प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. नीशू कुमार ने कार्यक्रम की विस्तृत रूप रेखा प्रस्तुत करते हुए अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में डॉ. हिमांशु, डॉ. अनीता, श्री नवीन कुमार, डॉ. श्वेता, डॉ. देवपाल, डॉ. किरण शर्मा, डॉ. पुनीता, विपुल सिंह आदि शिक्षक उपस्थित रहें। ​समारोह के मुख्य अतिथि, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, उत्तराखण्ड प्रान्त कार्यवाहक श्री दिनेश सेमवाल ने माँ शारदे को नमन करते हुए कहा कि चमनलाल महाविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में उस प्रकाश पुंज की तरह कार्य कर रहा है जो कि क्षेत्र की दशा एवं दिशा को परिवर्तित करने वाला है। स्वर्णिम भारत की प्राचीन तस्वीर का साक्षात्कार करते हुए श्री सेमवाल जी ने बताया कि जिन अधिकारों पर हम आज चर्चा कर रहे है उनका तो वर्णन भारतीय ग्रन्थों में पूर्व में ही वर्णित है। अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि पाश्चात्य शिक्षा एवं पाश्चात्य प्रभाव के कारण वर्तमान भारतीय पीढ़ी ने अपने संस्कारों, सांस्कृतिक मूल्यों एवं पूर्वजों के संस्कारों से मुंह मोड़ लिया। उन्होंने बताया कि भारत आज विश्वगुरू बनने की राह पर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि अगर विश्व में शांति एवं सुरक्षा चाहते हो तो उसका एक मार्ग केवल भारत से ही निकलता है। अपने उद्बोधन में कहा कि हम उस स्वर्णिम भारत के निवासी है जहां महिलाओं को देवी का दर्जा पूर्व में प्राप्त था। आज वहां हम महिला अधिकारों की चर्चा कर रहे है। इसका केवल एक मात्र कारण पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव है। ‘‘यत्र नार्यसतु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’। वैदिक मूल्यों एवं संस्कारों पर सवार होकर भरत बनेगा विश्व गुरू।
​पं0 राम कुमार शर्मा, अध्यक्ष, प्रबंध समिति ने कहा कि समाज के प्रत्येक मनुष्य तक संस्कार युक्त गुणवत्तापूर्ण एवं सर्वागीण विकास से युक्त शिक्षा पहुंचाकर ही भारतीयों के सम्पूर्ण अधिकारों को दिया जा सकता है। मुख्‍य वक्‍ता श्री देव सुमन विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. डीकेपी चौधरी, ने अपने कहा कि अधिकारों की उत्पत्ति का सर्वप्रथम प्रयास 500 वी0सी0 में प्राप्त होता है। साथ ही बताया कि अधिकारों के प्रथम घोषणा पत्र में सर्वाधिक योगदान महिलाओं का है। आगे उन्होंने बताया कि नारी सशक्तिकरण एवं मानवीय अधिकारों को संपोषित करके है हम क भारत श्रेष्ठ भारत की संकल्पना को साकार कर सकते है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य विचारक के सिद्धान्त, उपभोग का सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुए बताया कि अधिकार किसके लिए है और अधिकारों का उपयोग, कौन, कितना और कैसे कर सकता है, को प्रमाणित किया। उन्होंने कहा कि अधिकारों के उपभोग में राज्यों की भूमिका का सदैव परिवर्तित होती रहती है। डॉ. चौधरी ने अपने उद्बोधन में कहा कि अधिकारों में तीन चीजें है। प्रकृति द्वारा प्रदत्त राज्य एवं समाज द्वारा मान्य होने चाहिए। मनुष्य को मनुष्य होने के नाते जो अधिकार प्राप्त होते हैं वह मानवाधिकार है। अधिकारों का अलग-अलग वर्ग है। दुनिया राजनीतिक तौर पर बढ़ी हुई है। पहली दुनिया में जो चीजें दिखती है वह पांचवी दुनिया में नहीं दिखती है। नीतियां सही बनी हुई है लेकिन धरातल पर उतर कर बेकार हो जाती है।
​राजकीय महाविद्याल, मंगलौर के प्राचार्य डॉ. तीर्थ प्रकाश ने अपने उद्बोधन में मानवाधिकार का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया कि मानव के अधिकारों की प्रथम बार घोषणा मैग्नाकार्टा की घोषणा से माना जाता है। अपने व्याख्यान में डॉ. प्रकाश ने स्पष्ट किया गया कि महिलाओं के पिछड़े होने का कारण परम्परा एवं आधुनिकता के बीच विरोध उत्पन्न होना है। अपने सारगर्भित व्याख्यान में डॉ. तीर्थ प्रकाश ने बताया कि महिलाओं एवं बच्चों के सन्दर्भ में अगर देखा जाये, तो उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं है। सदियों से महिलाओं के साथ भेदभाव होता है उनके निर्णय आज भी पुरुष द्वारा लिये जाते है जिससे महिलाओं की स्थिति दयनीय बनी है। पुरुषों की मानसिकता यह है कि हमारे अधिकार खत्म हो जायेंगे। उन्होंने बताया कि हमारे संविधान में महिलाओं एवं बच्चों के लिए विशेष प्रावधान किए गये हैं। उन्होंने कहा कि महिलाएं आज भी अपनी स्वतंत्रता एवं आत्मनिर्भरता के मध्य झूल रही है। अपने व्याख्यान के अंत में डॉ. प्रकाश ने बताया कि हम महिलाओं की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा पर ध्यान देकर उनको सशक्त एवं समृद्ध बना सकते है। ​प्रशिक्षण कार्यक्रम की विशिष्‍ट वक्‍ता डॉ. अपेक्षा चौधरी ने कहा कि केवल कानून बनने से अधिकार सुरक्षित नहीं होते है। परिवार में भी अधिकार सुरक्षित नहीं होता ऐसा ही समाज में भी होता है। हम एक डर का माहौल बनाए, क्योंकि भय बिना प्रीत न होई। हम बच्चों को भी डराते है। मदर इण्डिया में एक आदमी पैसा ले लेता है, लेकिन निरक्षर होने के कारण वह उधार लिया गया पैसा नहीं चुका पाता है। बॉन्डेड लैबर आज भी ईंट के भट्टों पर बंधुआ मजदूर मिलते है। क्योंकि ज्यादातर लोग अपनी परेशानियों के चलते काम करते है। कानून में छूट लेते है। इस कानून के तोड़ के लिए अनुबंध कर लिया जाता है। इस एक्ट में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी निश्चित की गई है। एक एक्ट के तहत बच्चे खतरनाक कार्य में काम नहीं कर सकते है। जो कार्य खतरनाक नहीं है वहां भी कुछ प्रतिबंध के साथ काम कर सकते है। डॉ. चौधरी ने अपने उद्बोधन में कहा कि किसी भी संस्था का भविष्य युवा ही है। हम जाति के आधार कोई भेदभाव नहीं करेंगे, ऐसा संविधान में कहा गया है। डॉ. कल्पना भट्ट ने अपने व्याख्यान में भारत में मानवाधिकार का आशय स्पष्ट किया कि अधिकार, न्याय एवं स्वतंत्रता का अधिकार दिये बिना हमें मानवाधिकार की कल्पना भी नहीं कर सकते है। डॉ. भट्ट ने कहा कि मानवाधिकार के आशय उद्देश्य एवं स्वरूप तभी वास्तविक रूप में समाज में दिखेगा जब हम समानता एवं स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान कर सकेंगे। व्याख्यान में वक्ता के रूप में डॉ. भट्ट ने अधिकारों के प्रकारों को स्पष्ट करते हुए बताया कि प्राकृतिक मोरल एवं विधिक अधिकार हमें पहले ही प्रदान किये गये है। डॉ. कल्पना भट्ट ने कहा कि प्रत्येक मानव को अपने गरिमाय जीवन यापन हेतु कुछ अधिकार प्राप्त है। इन अधिकारों का उचित प्रयोग तभी होगा जब हम मनुष्य से मनुष्यता का व्यवहार करेंगे। भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमें भारतीय होने पर गर्व है। साथ ही भारतीय संविधान के महत्व को स्पष्ट करते हुए बताया कि वह मानवाधिकार के लिए भारतीय संविधान नींव के आधार स्तम्भ के रूप में स्थित है। एनएचआरसी एवं एसएचआरसी के सभी प्रावधानों की तुलना भारतीय संविधान में वर्णित सभी संवैधानिक प्रावधानों से करते हुए डॉ. भट्ट ने स्पष्ट किया कि हमारा भारतीय संविधान पूर्व में दूरदर्शी एवं जनकल्याण से युक्त सोच का परिणाम है। कोई भी अधिकार, न्याय के साथ ही फलीभूत होते है।
​महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुशील उपाध्याय जी ने सभी सम्मानित अतिथियों के लिए स्वागत उद्बोधन एवं अध्यक्षीय भाषण में महाविद्यालय की उपलब्धियां एवं विगत वर्षों की प्रगतियों का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया। डॉ. उपाध्याय ने कहा कि महाविद्यालय से पहली पीढ़ी कालेज आयी पांच छात्रों ने नेट तथा जेआरएफ पास किया। विश्वविद्यालय की टॉपर लिस्ट में 7 बच्चे है। महाविद्यालय में आधे से अधिक छात्र अल्पसंख्यक है। महाविद्यालय में 50 से अधिक सेमीनार आयोजन किया जा चुका है। उन्होंने आगे कहा कि अफ्रीकी कहावत- जो पैदा नहीं हुए एवं जो गुजर चुके उन्हीं के अधिकार सुरक्षित है।

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