हरिद्वार

करिष्ये वचनं तव का लिया संकल्प: डॉ पण्ड्या

शांतिकुंज में 27 कुण्डीय तथा देसंविवि में 24 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) हरिद्वार। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में नवरात्र साधना में जुटे साधकों को संबोधित करते हुए कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या ने कहा कि साधना से मन की चंचलता दूर होती है। भगवान हृदय और अंतःकरण के भाव को सुनते हैं। भगवान से मिलन हेतु साधना करने का यह सर्वोत्तम समय है। योगेश्वर श्रीकृष्ण से अर्जुन कहते हैं- हे अच्युत! आपके कृपा प्रसाद से मेरा मोह नष्ट हो गया है और मुझे स्मृति (ज्ञान) प्राप्त हो गया है? अब मैं संशयरहित हो गया हूँ और मैं आपके वचन (आज्ञा) का पालन करूँगा। अपने अनुभवों को साझा करते हुए अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने कहा कि मनुष्य (साधक) भगवान के प्रति अटूट श्रद्धाभाव रखें, तभी भगवान स्वयं साधक के पास आयेंगे और उनकी रक्षा करेंगे। श्रद्धेय डॉ पण्ड्या ने नौ दिन तक गीता का उपदेश-सार व गीता की महिमा विषय पर स्वाध्याय शृंखला में गायत्री साधकों का मार्गदर्शन किया। इस दौरान शांतिकुंज आये दस हजार से अधिक साधकों ने करिष्ये वचनं तव का संकल्प लिया। तो वहीं देश विदेश के लाखों साधक भी आनलाइन जुड़ें और गायत्री साधना अभियान में जुड़े। उल्लेखनीय है कि युवा आइकॉन डॉ चिन्मय पण्ड्या जी इन दिनों यूरोप प्रवास में है। नवरात्र के अंतिम दिन उन्होंने बाल्टिक परिवार को आश्विन नवरात्र की आध्यात्मिक ऊर्जा से लाभान्वित करते हुए लिथुआनिया की राजधानी विल्नियस में गायत्री दीपयज्ञ संपन्न कराया और करिष्ये वचनं तव का संकल्प कराया। इससे पूर्व नवरात्र साधना के अंतिम सत्र को संबोधित करते हुए शांतिकुंज व्यवस्थापक श्री योगेन्द्र गिरी जी ने कहा कि जीवन साधना को इतना प्रखर व प्राणवान बनायें, जिससे भगवान की कृपा आप पर सदैव बनी रहे और आपको इच्छित फल की प्राप्ति हो। इससे पूर्व संगीत विभाग के भाइयों द्वारा प्रस्तुत गीत ‘धन्य है जिन्दगी यह हमारी, नाथ पाकर सहारा तुम्हारा ने उपस्थित साधकों को भक्ति भाव में झूम उठे। वहीं शारदीय नवरात्र की पूर्णाहुति के अवसर पर देवसंस्कृति विवि परिसर में 24 कुण्डीय तथा शांतिकुंज परिसर में 27 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन हुआ। इसमें शारदीय नवरात्र अनुष्ठान में जुटे देश-विदेश से आये हजारों साधकों सहित देसंविवि व शांतिकुंज के अंतःवासी भाई-बहिनों ने अपनी साधना की पूर्णाहुति की। इस अवसर पर साधकों, विद्यार्थियों के चेहरे पर उत्साह एवं प्रसन्नता झलक रही थी। इस दौरान दोनों परिसरों में सामूहिक भोज का भी आयोजन हुआ। इसके साथ ही पुंसवन, विद्यारंभ, नामकरण, मुण्डन, विवाह सहित विभिन्न संस्कार निःशुल्क कराये गये।

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