कब तक सहेगी मानवता ऐसे-ऐसे आघात, कोई शान्ति दूत पैदा हो करे शान्ति का प्रभात: विशाखा चौधरी
इमरान देशभक्त रुड़की प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(इमरान देशभक्त) रुड़की। यूरेशिया एफ्रो चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन के सहयोग से धर्म के साथ जुडकर मानवता के कल्याण के लिए विश्व में कैसे शांति बहाल की जाए, उस पर मंथन हेतु दिल्ली में एक सेमिनार आयोजन किया, जिसमें भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों से अलग-अलग धर्मों कर प्रतिनिधियों, विद्वानों एवं वक्ताओं ने अपने-अपने विचार रखे, जिसमें उत्तराखंड राज्य से विशाखा चौधरी ने भी सेमिनार में प्रतिभाग कर अपने विचार रखे कि कैसे भारत विश्व में शांति के लिए अपने मूल वाक्य “वसुधैव कुटुम्बकम्” को अपनाकर पूरी मानव-जाति के उत्थान के लिए कार्य कर सकता है, क्योंकि हमारे यहां विभिन्न जातियों और संप्रदायों के लोग एक साथ रहते हैं, हमारी संस्कृति ही “यूनिटी इन डाइवर्सिटी” की रही है, हमारा तो भक्ति आंदोलन का एक पूरा इतिहास रहा है।
जहां पर विभिन्न धर्म-गुरुओं एवं संतों जैसे संत रामानन्द, संत कबीर, संत रैदास अनेक सूफी-संतों, रहीम दास व रसखान आदि सभी ने अपनी कविताओं व दोहों के माध्यम से धार्मिक कट्टरपंथता, संप्रदायों एवं वर्ण व्यवस्था के बंधनों को तोड़ कर मानव-जाति के कल्याण हेतु सबको आपसी भाईचारा बढ़ाने का संदेश दिया, परंतु आज फिर से हमारे बीच कुछ लोगों के नकारात्मक प्रयास की वजह से धर्म को भूलकर संप्रदाय के आधार पर समाज में खींचातानी चल रही है।मुन्शी प्रेमचंद ने कहा था कि सच्चा ज्ञान ही धर्म है।निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर हम देखें तो हम सबसे पहले इंसान है, इंसानियत ही हमारा पहला धर्म है।सन् 1893 के धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने भी शिकागो से पूरे विश्व को मानवता के प्रति करुणा एवं निस्वार्थ सेवा का संदेश दिया था।हमें उन महापुरुषों के दिखाए मार्ग पर फिर से चलना होगा।आज धर्म के मर्म को समझ रहा है कौन? कांव,कांव कौआ करता,कोयल बैठी मौन।