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कलम की विश्वसनीयता बनाये रखना ‘स्तम्भकार’ की नैतिक जिम्मेदारी

राजेश कुमार देहरादून प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) देहरादून। पत्रकारिता सदैव से एक सशक्त हथियार माना जाता रहा है, जिसने भारत की आज़ादी के युग से ही अपना वर्चस्व व महत्वता को वक़्त वक़्त पर सिद्ध किया है। क्रांतिकारियों में जोश का संचार हो, या अंग्रेज़ी की दमनकारी नीति के खिलाफ लाला लाजपत राय, भगत सिंह, सुखदेव जैसे वीरो की एकजुटता हर कदम पर लेखनी ने सभी को अपना किरदार निभाया है। अंग्रेजो ने कई बार पत्रकारों की स्वन्त्रता पर पाबंदी की जंजीरे जकड़ी पर कहते है न ‘वह कलम ही क्या जो बंध जाए’ सिद्ध करते हुए छिपकर ही सही पत्रकारिता के माध्यम से हर स्वतंत्रता सेनानी ने आज़ादी की लड़ाई में जो आहुति दी, उससे पत्रकारिता की ‘महत्वता’ का नया आगाज़ कहा गया था। अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ उस वक़्त ‘मात्र कलम की लेखनी’ ने जो संचार किया है वह स्वतंत्र भारत मे वर्ष दर वर्ष कई रूप में निखरा। अखबार से शुरू हुए पत्रकारिता के प्रारुप आज के युग मे टीवी, मैगज़ीन,डिजिटल मीडिया-आसान भाषा मे सोशल मीडिया (मैसेंजर, व्हाट्सएप्प, फेसबुक आदि), पॉडकास्ट में देखे जा रहे है। आज प्रारूप भले ही अलग अलग हो किन्तु मकसद एक है-स्वतंत्र, व पेशे में ईमानदारी व जिम्मेदार।

हर वर्ष भारत मे आज 16 नवंबर के दिन राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस मनाए जाने का मकसद है कि पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगो द्वारा अपनी लेखनी को स्वतंत्र रखने व सदैव सच को ही उकेरने की अपनी जिम्मेदारी को सदैव जीवित रखना है। उसके संरक्षण को ही आज के ही दिन वर्ष 1966 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना हुई थी। पत्रकारिता वह माध्यम है जिससे आम जनता की बात, उनकी समस्याओं को कहा जा सकता है, दिखाया जा सकता है, और उनके लिए लाभकारी योजनाओं को उनतक पहुँचाया जा सकता है। कह सकते है कि ‘पत्रकारिता समाज का आईना है’ किन्तु आज के युग मे जब हर कोई पत्रकार हाथ मे एक मोबाइल उठाकर पत्रकार बनने के दावे करता है तो ‘पत्रकारिता जगत’ के असल चेहरो की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वह भ्रामकताओ पर लगाम लगाए और सच को दिखाए। आज के मॉडर्न एरा की पत्रकारिता में सबसे जरूरी है कि ‘पत्रकार अपनी पत्रकारिता की विश्वनीयता को बनाये रखने को’ अपनी हर खबर का सत्यपान स्वयं से करें। कोई भी खबर पत्रिका के माध्यम से आती है उनके पास सत्यता को जांचने व परखने को अधिक समय होता है, किन्तु डिजिटल मीडिया व टीवी आदि में ”पहले लिखने व दिखाने की होड़” में खबर की सत्यता पर कई मर्तबा सवाल खड़े हो जाते है। खबर की गहराई, सत्यता की तस्दीक करने के बेसिक रूल को मीलों दूर छोड़कर हम पहले लिखेंगे तो सबसे ज़्यादा पढ़े व देखे जाएंगे के चक्कर मे झूठ लिख देते है,जिसपर लगाम लगाना स्वयं चिंतन का विषय है।

कलम कभी भी ‘बायस्ड’ नही होनी चाहिए। किसी व्यक्ति विशेष, सत्ता- विपक्षी, आम-खास आदि के पडपंचो से कलम कोसो दूर होती है और होनी भही चाहिए। कलम की विश्वसनीयता को बनाये रखने को निष्पक्ष होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। कलम में स्वतंत्रता का रंग सदैव जीवित रखने से ही आम जनता में ‘कलम के प्रति सम्मान’ बना रहता है, जहां वह समाज की अच्छाई व बुराई दोनो रूपों को समानता से दिखाए।

पत्रकारिता का नियम कहता है कि पत्रकार को मात्र एक खबर दिखाने को घटनास्थल पर जाकर कवरेज नही देनी होती। उससे जुड़े लोगों, उससे प्रभावित होने वाले लोगो, खबर में कितनी सत्यता, उसके हर एंगल को जांचना भी हम स्तंभकारों की जिम्मेदारी है। अगर किसी दुष्कर्म पीड़िता की खबर को कोई लिखता है तो स्तम्भकारो के लिए जरूरी है कि घटना को सच-सच लिखे पर पीड़िता के अस्तित्व व उसकी व उसके परिजनों की पहचान को कोई खतरा न हो वह सबसे पहले मुकर्रर करें, जोकि एक निजी नैतिक जिम्मेदारी भी है। वहीं कोई खबर दिखाने भर से नही, उस खबर में आम जनता की प्रतिक्रिया को सही मायनो में अपनी लेखनी में जगह देना भी पत्रकारिता की जिम्मेदारी है। जिसके लिए लेखनी है उसकी बात ही हम नही कह सकते तो कलम की ताकत का कोई फायदा नही।

*अंग्रेज़ी में कहावत है कि ‘ the pen is mighter than sword’* यानी एक कलम के शब्दो व विचारों में हिंसा से ज़्यादा ताकत है। पत्रकारिता जगत से जुड़े हर पत्रकार की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि ‘ उनकी जन-जन तक पहुँच’ का फायदा वह जमकर किन्तु सही मायनों में फायदा उठाये और कोई भी भ्रामक खबरों के फैलने के दौर में जनहानि को रोकने को कलम की ताकत का प्रदर्शन पुरजोर तरीके से करे व झूठ व भ्रामकता का खंडन करें व और जरूरी है तो मात्र खंडन तक नही उन खबरों में सुधार को क्या कदम उठाए वह भी जरूरी है। जरूरी यह भी है कि पत्रकार अपने खबरों की स्त्रोतो की जानकारी भी अपनी लेखनी में जरूर साझा करें ताकि आम जनता उसपर विश्वास कर सके।

आज टेक्नो वर्ल्ड के साइबर क्राइम, साइबर क्लोनिंग, वॉइस मोडयूलेशन आदि शब्द कोई नया नाम नही है, और इन शब्दो से आम जनता को जागरूक व परिचित करवाने का जिम्मा स्तम्भकार द्वारा निभाया गया है जो सराहनीय है, इसलिए पत्रकारिता एक जिम्मेदारी का केंद्र है यह कहना गलत नही होगा, और इसे बनाये रखना हर स्तम्भकार की जिम्मेदारी है। आज ‘कैमरे के दम पर खुद को पत्रकार’ कहने वाले व सोशल मीडिया में एकाउंट पर लाइव एक्सपोज़ कर दूंगा’ जैसे विचार रखने वाले ‘कथित पत्रकारों’ से समाज को बचाने की जरूरत है और इनसे आम जनता को बचाने का कार्य स्वयं पत्रकारिता से बेहतर कोई नही कर सकता। इसलिए मीडिया संस्थानों को स्वयं जरूरी है कि वह आपसी समन्वय से पत्रकारिता व पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगो के लिए नियम बनाये, उनके लिए मीडिया की शिक्षा की अपरिहार्यता तय करें व लागू भी करें। और अंत मे सबसे जरूरी है कि पत्रकारिता को बढ़ावा देना सरकार के लिए भी जरूरी है। सरकारी कार्यो का प्रचार भी सरकार पत्रकारिता के माध्यम से होता है,इसलिए उनकी स्वतंत्रता जरूरी है। पत्रकारिता भले ही सरकार के किसी एक कार्य की विरोधी हो किन्तु देश की नही तो उसे भी कहने व लिखने का पूर्ण अधिकार दे। अंग्रेजो की तरह दमनकारी नीति न अपनाते हुए कलम को दोनो पक्ष लिखने दे(बशर्ते कलम दोनो पक्ष लिखे) और आम जनता को उनके लिए क्या सही क्या गलत खुद सोचने-समझने का अधिकार दे-जो एक सुदृढ स्वतंत्र राष्ट्र में निर्माणदायी होगा।

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