आइए जानते हैं आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी के निज धाम मणिद्वीप के दिव्य रहस्य: श्वेता शर्मा
राजेश कुमार देहरादून प्रभारी
हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) देहरादून। माता आदि शक्ति भवानी भुवनेश्वरी जो संपूर्ण ब्रह्मांड की माता हैं। जिनकी इच्छा शक्ति मात्र से करोड़ों ब्रह्मांडों का क्षण भर में निर्माण व प्रलय हो जाता है। उन मां आदिशक्ति के विषय में जितनी जानकारी वेदों पुराणों में वर्णित है वे सब उस प्रकार ही हैं कि जिस प्रकार समुद्र से एक लोटा जल प्राप्त किया गया हो। मां दुर्गा अपनी ऐश्वर्या शक्ति से ही विभिन्न रूपों में परिवर्तित होती हैं, और प्रलय काल में उन्हें ही समेट कर एक रूप हो जाती हैं। देवी भागवत के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि समस्त देवता उन्हीं के स्वरूप माने गए हैं। जो सृष्टि काल में सर्वशक्ति, स्थिति काल में पालन शक्ति तथा संहार काल में रुद्र शक्ति के रूप में रहती हैं। इस समस्त चराचर जगत उन्हीं के मनोरंजन की सामग्री है। इन देवी का निज स्थान मणीद्वीप है। ब्रह्मलोक के ऊपर सर्वलोक के नाम से प्रसिद्ध मणिद्वीप नामक स्थान आदि शक्ति भगवती भुवनेश्वरी देवी का ही निवास स्थान है। संपूर्ण लोकों में श्रेष्ठ होने के कारण ही इसका सर्व लोक नाम है। इसके समान त्रिलोकी में कहीं कोई भी सुंदर धाम नहीं है।जगत के लिए यह छत्र स्वरूप है। सभी ब्रह्मांड इनकी छत्रछाया में रहते हैं। सांसारिक ताप भी यहां अपना प्रभाव नहीं डाल सकते हैं। माता त्रिपुर सुंदरी का यह धाम किसी भी सुंदर स्थान से कई गुना अधिक सुंदर है। माता साक्षात अपने स्वरूप में यहां निवास करती हैं। यही माताजी का परमधाम जाना जाता है, उनके प्रिय भक्त सदा सर्वदा के लिए उनके साथ यहीं पर वास करते हैं।
मणिद्वीप में स्थित चिंतामणि ग्रह देवी का प्रधान स्थान है। मूल प्रकृति भगवती भुवनेश्वरी के 10 शक्ति तत्व सोपान रूप से यहां उपस्थित हैं। शक्तियों एवं शक्ति तत्वों से युक्त देवी का ऊंचा मंच शोभायमान है यह मंच अत्यंत ऊंचा है और अनेकों सीढ़ियां इसमें विद्यमान हैं। इन सीढ़ियों पर बहुमूल्य मणि, रत्न व हीरे जड़ित है। जिनकी शोभा ऐसी जान पड़ती है कि मानो करोड़ सूर्य चमक उठे हों। माता जी की दिव्य कांति से सुशोभित वह स्थान ऐसा जान पड़ता है जिसकी तुलना संसार की किसी भी वस्तु से नहीं की जा सकती केवल उनके प्रिय भक्त ही उनका दर्शन कर पाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु रुद्र और साक्षात सदा शिव यह चारों देवता उस मंच के पाए हैं अनेक देवांगनाए सदा माता जी की सेवा में तत्पर रहती हैं माता जी के मस्तक पर अमूल्य रतन का दिव्य मुकुट शोभायमान है। कुमकुम और कस्तूरी के तिलक से देवी का उन्नत ललाट प्रकाशमान रहता है। उनका मुख मण्डल चंद्रमा की भी ज्योत्सना को लज्जित करता है। कमल दल की आकृति धारण करने वाले तीन नेत्रों से वे अतिशय मनोहर जान पड़ती हैं।उनकी चार भुजाएं पाश अंकुश वर और अभय मुद्रा से सुशोभित हैं। बहुत सी सखियां दासियां भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति करती रहती हैं। नौ पीठ शक्तियां भगवती त्रिपुर सुंदरी की सेवा में सदा तत्पर रहती हैं। शंख निधि और पदमनिधि यह निधियां भगवती के पार्षव भाग में विद्यमान है। माता त्रिपुर सुंदरी के इच्छा मात्र से ही करोड़ों ब्रह्मांडों का निर्माण हो जाता है। माताजी कुपित होने पर खेल-खेल में ही न जाने कितने ब्रह्मांडों को नष्ट कर डालती हैं। भगवती भुवनेश्वरी का चिंतामणि ग्रह 1000 योजन लंबा चौड़ा कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवती का यह धाम अंतरिक्ष में सुशोभित है, न तो प्रलय काल में इसका नाश होता है। और न सृष्टि काल में इसकी उत्पत्ति ही होती है। भगवती के उपासक मृत्यु के बाद यहीं आते हैं यहां मनोरथ रूपी फल वाले बहुत से वृक्ष हैं। मणिद्वीप में कभी भी बुढ़ापा अपना प्रभाव नहीं डाल सकता। यह दिव्य स्थान चिंता, काम और क्रोध से रहित है। यहां रहने वाले सभी युवावस्था से संपन्न तथा हजारों सूर्य के समान तेजस्वी बने रहते हैं, प्रत्येक ब्रह्मांड में रहने वाले भगवती के भक्त ही यहां भुवनेश्वरी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। इस प्रकार भगवती भुवनेश्वरी मणिद्वीप में निवास करते हुए अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं सदा ही पूर्ण करती रहती हैं यह मुक्ति भी प्रदान करती हैं। और अपने भक्तों को अंत समय दर्शन देकर यहीं पर अपने धाम में वास कराती हैं। भगवती के परम उपासक ध्यान में भी इसी द्वीप और भगवती का चिंतन करते रहते हैं।