हरिद्वार

नजरियॉ बदलने के लिए जीवन-शैली मे बदलाव जरूरी: डॉ० शिव कुमार चौहान

रजत चौहान प्रधान सम्पादक

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रजत चौहान) हरिद्वार। नजरियॉ बदलने के लिए जीवन-शैली मे बदलाव जरूरी है। केवल सोच एवं विचार बदलने से स्वस्थ्य नही रहा जा सकता। स्वस्थ्य जीवन की संकल्पना मे योग बेहतर एवं सरल माध्यम है। आधुनिक जीवन की आदि-व्याधियों का सरल एवं प्रभावशाली उपचार केवल योग मे निहित है। वहीं गुरुकुल कांगडी समविश्व विद्यालय हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ० शिव कुमार चौहान ने मां शाकुम्भरी विश्वविद्यालय मे चल रहे योग महोत्सव के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप मे यह बात कही। प्रदेश की राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय की कुलाधिपति श्रीमती आनन्दीबेन पटेल की प्रेरणा से अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस को भव्य रूप देने के लिए योग महोत्सव मे सोमवार को प्रातः 8ः00 बजे से आयोजित व्याख्यान मे योग विज्ञान के सदंर्भ मे नकारात्मक एवं सकारात्मक सोच के मनोवैज्ञानिक पक्ष विषय पर बोलते हुए डॉ० शिवकुमार चौहान ने कहॉ कि जीवन-शैली को प्राकृतिक अनुकूलता, मानकों के साथ सामाजिक आचरण, संयमित जीवन तथा सहनशील भाव को अपनाकर तनाव, अवसाद, दबाव, चिन्ता, अर्न्तद्वन्द तथा भय से उत्पन्न विकारों से मुक्ति मिल सकती है, वही सामाजिक आचरण की शुद्वि से तलाक, आत्महत्या, शोषण, चारित्रक हनन जैसी व्यवहार तथा सोच से जुडी समस्याओं का समाधान सम्भव है। डॉ० चौहान ने कहा कि नकारात्मक भाव केवल वाहय आचरण का हिस्सा नही अपितु आन्तरिक एवं आचरणजन्य स्थितियॉ भी इससे प्रभावित होती है। डॉ० शिवकुमार ने कठोपनिषद, मंत्रयोग, लययोग, हठयोग, सांख्यदर्शन के साथ स्कन्दपुराण एवं श्रीमदभगदगीता के प्रमाणों से योग के प्रभावशाली पक्ष को प्रस्तुत किया। वही महात्मा बुद्व के उपदेश, जैन धर्म के पॉच महाव्रत, महाकाव्य रामायण एवं महाभारत मे योग के संदर्भ, श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के संवाद मे योग के प्रभाव को समस्या समाधान मे उपयोगी एवं प्रभावशाली सिद्व किया। राजयोग, भक्तियोग, नवद्या भक्ति एवं यज्ञ के द्वारा मन को पूरी तरह से परमात्मा मे लीन रखकर आधुनिक एवं भौतिकवाद की प्रखर समस्याओं के समाधान प्रस्तुत किये। सारांश मे उन्होने कहॉ कि योग तथा मनोविज्ञान द्वारा मन से जुडी अनेक समस्याओं का निराकरण प्राप्त किया जाना सम्भव है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो० विमला वाई ने अध्यक्षीय उदबोधन मे कहा कि केवल काम के लिए नही कहना नकारात्मक भाव नही है। समय एवं परिस्थिति दोनो पक्षों का मूल्यांकन करके निर्णय लेना योग है। उन्होने कहॉ कि केवल अपने बारे मे सोचने वाला सच्चे अर्थो मे भारतीय नही। वसुधैवकुटुम्बकम तथा सर्वे भवन्तु सुखिनाः का भाव पूरी दुनिया मे भारत की विलक्षण संस्कृति को अलग पहचान प्रदान करता है। कुलपति प्रो० विमला वाई० ने आज के व्याख्यान को योग एवं मनोविज्ञान के शोधछात्रों के लिए प्रेरक एवं ज्ञानवर्धक बताया। इस अवसर पर प्रो० संदीप गुप्ता, कार्यक्रम के संयोजक डॉ० विनोद कुमार, संजय, पंकज, ममता, कोमल, पूजा, संदीप, शशि, विजय, पारूल, यशिका आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ० प्रदीप कुमार द्वारा किया गया।

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