हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) देहरादून। श्वेता शर्मा ने अपनी कलम से बताया कि गंगा जिसे हिन्दू धर्म में मां की उपाधि दी गई है, आपके पूर्वजों ने मुझे धरती पर लाने के लिए बड़े ही आराधना और तप व बड़े त्याग किए। कई पीढ़ियों तक जब तपस्या के फलीभूत होने से ही मेरा आगमन इस धरा पर हुआ। मैं भारत की सबसे महत्वपूर्ण व हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार सबसे पवित्र नदी हूं। सदा से ही जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी हूं जहां-जहां से मैंने अपनी यात्रा की वहीं वहीं पर मेरी सहायक नदियों के साथ विशाल उपजाऊ मैदान में बसे चले गए, तुम्हारे पूर्वजों ने सदा मेरा सम्मान किया। मुझे सामाजिक साहित्यिक सांस्कृतिक व आर्थिक दृष्टि से महत्व दिया व मां मानकर सदा मेरे आंचल में सुख पाया। सभी भारतीय पुराणों और साहित्य में मुझे आदर के साथ मां गंगा कहकर संबोधित किया। जिससे मैं भावनात्मक व मातृत्व भाव से परिपूर्ण रही। समय के परिवर्तन के साथ तुमने जगह-जगह से मुझ पर बांध बनाए बिजली पानी व कृषि से संबंधित जरूरत को पूरा किया। तुम्हारे जन्म से लेकर मृत्यु तक में हर स्थान व वस्तु को पवित्र करने वाली हूं, मेरे जल का उपयोग सभी धार्मिक कार्यों में अनिवार्य रूप से होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी मेरे जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं मेरे इस आध्यात्मिक व धार्मिक वैज्ञानिक गुणों के बावजूद भी तुम आज की पीढ़ी के मानव पूर्ण रूप से मेरा तिरस्कार हो रहा है। तुम्हारी मृत्यु के बाद एकमात्र मैं ही तुम्हें प्रभु के चरणों का स्पर्श करवाती हूं। तुम पाप करते हो और मुझमें गोता लगा कर खुद को पवित्र करते हो। परंतु कभी यह सोचा है कि जो गंदगी तुम मुझ में प्रवाहित कर रहे हो इससे तुम्हें कितने भयंकर पापों का दंड भोगना पड़ सकता है मैं केवल नदी नहीं हूं केवल बहता जल नहीं हूं अपितु एक साक्षात् देवी हूं जो अब किसी माध्यम से तुम्हें सचेत कर रही हूं वैसे भी यह सत्य है कि आप जो भी किसी को भेंट करते हैं वह आपको कई गुना वापस आपको ही प्राप्त होता है तो फिर हर प्राणी को प्रकृति को कुछ अच्छा ही भेंट करना चाहिए। मैं हर प्राणी को जाग्रत कर रही हूं शीघ्र ही मुझमें किसी भी तरह से गंदगी प्रवाहित करना बन्द करें अन्यथा भविष्य में इसके बड़े ही भयंकर प्रणाम सामने आ सकते हैं। मैं एक मां होने के नाते अपने बच्चों को माफ कर देती हूं। आखिर कब तक वैसे भी कई बार मैंने अपना बालक जानकर तुम्हारे अपराधों को क्षमा कर तुम्हें हल्का सचेत किया लेकिन आज प्राणी अपने स्वार्थ सिद्ध करने में सारी मर्यादा भूल गया है। मुझे सब दिखाई दे रहा है मुझमें थूक कर, साबुन व मल आदि त्याग कर मेरे तट पर गंदगी डालकर जूते चप्पल के द्वारा मेरा स्पर्श करके तुमने मुझे अपमानित करने का प्रयास किया इन अपराधों के द्वारा तुम्हारे पूर्वजों के किए पुण्य भी पाप में ही परिवर्तित हो रहे हैं। मैं एक मां होने के नाते तुम सब मानव प्राणियों को सचेत कर रही हूं कि शीघ्र ही मेरे तटो से गंदगी का प्रवाह रोक कर मुझे शुद्ध रूप से बहने दिया जाए व मेरा पुत्र होने के नाते तुम्हारा यह कर्तव्य है कि तुम्हारे सामने यदि कोई मेरा इस प्रकार अपमान करे तो तुम उसे रोक कर अपना पुत्रव्रत धर्म उसी तरह निभाओ जिस प्रकार श्री राम जी ने निभाया था। तुम्हारी मां गंगा अब अपना यह दर्द तुम सभी पुत्रों में बांट रही है अब से यह कर्तव्य यह शपथ तुम्हारी है कि मुझे पवित्र रखो व मेरी मर्यादा का ध्यान रखो भगवान श्री राम ने भी मुझे सदा पवित्र रखने की शपथ ली थी वह शपथ अब तुम भी लो वह भगवान राम के इस कार्य में सहयोग दो अपने पुत्रों को पुकारती ••••मां गंगा
गंग सकल मुद मंगल मूला, सब सुखकरनी हरनी सब सुला।