हरिद्वार

देसंविवि में हुआ वैश्विक समस्याएं सनातन समाधान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

विश्व की समस्याओं का समाधान भारत से निकलेगा: डॉ चिन्मय पण्ड्या

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हरिद्वार की गूंज (24*7)
(नीटू कुमार) हरिद्वार। देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज में वैश्विक समस्याएं, सनातन समाधान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी का बीएपीएस स्वामीनारायण शोध संस्थान के अध्यक्ष महामहोपाध्याय भद्रेशदास स्वामी, देसंविवि के कुलपति श्री शरद पारधी, देसंविवि के प्रतिकुलपति युवा आइकॉन डॉ चिन्मय पण्ड्या, उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति प्रो दिनेशचन्द्र शास्त्री, शोभित विवि के कुलाधिपति कुंवर शेखर विजेन्द्र ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर शुभारंभ किया। संगोष्ठी के अध्यक्ष देसंविवि के प्रतिकुलपति युवा आइकॉन डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि भारत वह भूमि है जहाँ वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव उत्पन्न हुआ और जिसने अध्यात्म को जन्म दिया। यह वही देश है जहाँ से सर्वे भवन्तु सुखिन: जैसे सार्वभौमिक कल्याण के विचार विकसित हुए। उन्होंने कहा कि आज जिस प्रकार विश्व अनेक जटिल समस्याओं से जूझ रहा है, उनके समाधान भारत की सनातन परंपरा में निहित है। यह परंपरा धार्मिक जीवनशैली है और एक समग्र जीवनदर्शन भी है जो व्यक्ति को आत्मकल्याण से लोकमंगल की ओर ले जाती है। युवा आइकॉन डॉ. पण्ड्या ने विभिन्न ऐतिहासिक और दार्शनिक उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट किया कि सनातन भारतीय दृष्टिकोण ही वैश्विक समस्याओं के समाधान में सहायक हो सकता है। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि बीएपीएस स्वामीनारायण शोध संस्थान के अध्यक्ष महामहोपाध्याय भद्रेशदास स्वामी ने कहा कि आज की जटिल समस्याएं मात्र परिस्थितियाँ हैं, जिनका समाधान भारत की सनातन संस्कृति और आर्षग्रंथों में विद्यमान है। स्वामीजी ने कहा कि शिक्षा, शोध और अध्यात्म मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं और ये तीनों जहां भी एक साथ विद्यमान होते हैं, वह स्थान स्वत: ही उन्नत भूमि में परिवर्तित हो जाता है। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में निहित ज्ञान-विज्ञान और चिंतन आज की वैश्विक चुनौतियों से निपटने की पूरी सामथ्र्य रखता है। उन्होंने विश्वविद्यालय की गतिविधियों को धार्मिक पुनर्जागरण की दिशा में ठोस कदम बताया। उत्तराखंड संस्कृत विवि के कुलपति प्रो दिनेशचन्द्र शास्त्री ने कहा कि आज के इस युग में पर्यावरणीय संकट, नैतिक पतन और सामाजिक विषमता जैसी चुनौतियों के समाधान हमें हमारे प्राचीन ग्रंथों और जीवन मूल्यों में मिल सकते हैं। देसंविवि की इस पहल की सराहना की और इसे राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक प्रभावशाली प्रयास बताया। शोभित विवि के कुलाधिपति कुंवर शेखर विजेन्द्र ने कहा कि आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जब युवा दिशाहीनता की ओर अग्रसर हो रहे हैं, तब ऐसे आयोजनों के माध्यम से उन्हें भारतीय ज्ञान परंपरा से जोडऩा अत्यंत आवश्यक है। इस अवसर पर युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने मंचस्थ अतिथियों को गायत्री महामंत्र लिखित चादर, युग साहित्य तथा देवसंविवि के प्रतीक चिह्न आदि भेंट कर सम्मानित किया। संगोष्ठी के दौरान कई पत्र-पत्रिकाओं का भी विमोचन किया गया। साथ ही विभिन्न प्रतियोगिता के प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में अतिथियों द्वारा पूजा-अर्चना के साथ हुई। इसके पश्चात शौर्य दीवार पर उपस्थित गणमान्यजनों एवं अतिथियों ने वीर सैनिकों को भावांजलि अर्पित की। इस अवसर पर शिक्षा सचिव डॉ सचिन चमोली, शांतिकुंज व्यवस्थापक श्री योगेन्द्र गिरि, कुलसचिव श्री बलदाऊ देवांगन, देसंविवि के अधिकारीगण, संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षक-शिक्षिकाएं सहित 20 से अधिक विवि के शोधार्थी एवं स्थानीय नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। दिन भर चले इस संगोष्ठी में 142 रिचर्स पेपर पढ़े गये, जिसमें कहा गया-विश्व के समक्ष जो भी समस्याएं हैं, चाहे वह मानसिक तनाव हो, पारिवारिक विघटन या पर्यावरणीय संकट, उनका समाधान सनातन धर्म की शिक्षाओं में स्पष्ट रूप से उपलब्ध है।

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