सबरंग काव्य गोष्ठी में मुखरित हुए कवि
आओ देखें माँ गंगा क्या कहती है, गौमुख से गंगासागर क्यों बहती है

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(अक्षय कुमार) हरिद्वार। ऋतुराज बसंत का आगमन होते ही जैसे माँ शारदा के वरदपुत्रों को नये स्वर मिल गये हैं। नगर में साहित्यिक संस्थाओं के साथ-साथ व्यक्तिगत काव्य गोष्ठियों की धूम है। इसी क्रम में नगर की अग्रणी संस्था पारिजात साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष तथा लब्ध गीतकार एवं कवि सुभाष मलिक के शिवालिक नगर स्थित आवास पर एक सबरंग कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें पधारे अनेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े आमंत्रित वरिष्ठ एवं युवा कवि-कवियत्रियों ने अपनी-अपनी विधाओं में काव्य रचनाएँ प्रस्तुत करते हुए ख़ूब वाह वाही बटोरी। स्वरों की देवी माँ सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन तथा पुष्पार्पण के उपरान्त कवियित्री कंचन प्रभा गौतम की वाणी वंदना मेरे कंठ में जो भी स्वर है, वो तेरा ही है वरदान के बाद वरिष्ठ कवि गिरीश त्यागी की अध्यक्षता तथा परिक्रमा साहित्यिक मंच के संरक्षक मदन सिंह यादव के कुशल संचालन में अरुण कुमार पाठक ने आओ देखें माँ गंगा क्या कहती है, गोमुख से गंगासागर क्यों बहती है के साथ पतितपावनी माँ गंगा की व्यथा कथा को श्रोताओं के सम्मुख रखा। सुभाष मलिक ने मैं परंपरा का दास नहीं, रूढ़ी में मेरा विश्वास नहीं’ कह कर रूढ़ीवादी समाज पर तंज कसे। गिरीश त्यागी ने जीवन को जीना होता है, चाहें जितना भी दुख आये। डा. शिव शंकर जायसवाल ने इम्तिहान कोई भी अंतिम नहीं होता और शशिरंजन समदर्शी ने कुदरत का प्रभु संसार समझना दूभर है’ कह कर प्रेरक जीवन दर्शन प्रस्तुत किये। रीढ़ पीठ को छोड़ चुकी है, कैसे बोझ उठाऊँ’ के माध्यम से साधुराम पल्लव ने जन समस्याओं को उजागर किया। दीपशिखा की अध्यक्षा डा. मीरा भारद्वाज ने धरती कर रही है सिंगार, सखी कंत पधारे हैं, मदन सिंह यादव ने खुशियां छाई हैं दिग्दिगंत आया मनभावन बसंत तथा कुंअर पाल सिंंह घवल ने उनकू बसंत जिनके तन पर बसंत सखी के साथ ऋतुराज का स्वागत किया। कंचन प्रभा गौतम ने ‘मेरे देश की मिट्टी चंदन है, नि-नित करती वंदन मैं तथा युवा जोश के कवि अरविन्द दुबे ने आओ देखें भारत माता से कितनों को प्यार हुआ है के साथ देश को नमन किया, तो राजकुमारी राजेश्वरी ने भी प्राण निछावर करने वाले याद हमें मुश्किल ही आते सुना कर देश के शहीदों को याद किया। डा. सुशील कुमार त्यागी अमित ने गीत खोजती है नज़र सोचता है, जिगर तथा इमरान बदायूँनी ने ग़ज़ल फूल जैसे खिल किसी दिन धूप जैसे उतर प्रस्तुत करके खूब तालियाँ बटोरी।