हरिद्वार

यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं के साथ खिलवाड़, रेगुलेटर पुल से बेंगमपुर की ओर बेख़ौफ़ दोड़ते बड़े भारी वाहन

मोहम्मद आरिफ उत्तराखंड क्राइम प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(मोहम्मद आरिफ) हरिद्वार। कांवड़ यात्रा के चलते भारी वाहनों की आवाजाही पर सख्त पाबंदी प्रशासन द्वारा लगाई गई है। स्वयं उच्चधिकारी सड़कों पर है और बारिकी से हर पहलू पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है। साथ ही अनेकों प्रकार की सुविधाएं कावड़ श्रद्धालुओं को उपलब्ध भी करा रहे हैं। जिससे सुरक्षित और कांवड़ यात्रा शान्ति पुर्ण संपन्न हो सकें। लेकिन हकीकत इसके उलट है। सुमन नगर क्षेत्र के रेगुलेटर पुल से होते हुए बेंगमपुर की ओर भारी वाहन खुलेआम बेख़ौफ़ कांवड़ पटरी से गुजर रहें हैं आप स्वयं तस्वीरों में साफ़ साफ़ देख सकते हैं। और यहां कांवड़ यात्रा को सम्पन्न कराने में प्रशासनिक कर्मियों को तैनात किया गया है। जो कावड़ श्रद्धालुओं की जान से खिलवाड़ है। कांवड़ यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु पैदल हरिद्वार हरकी पैड़ी से गंगा जल लेकर बहादराबाद कांवड़ पटरी मार्ग द्वारा बेंगमपुर मार्ग से होते हुए हरियाणा व पंजाब अपने गंतव्य की ओर रवाना हो रहे हैं।

प्रशासन ने कावड़ियों की सुरक्षा के लिए विशेष व विभिन्न यातायात योजनाएं भी बनाई हुई है। और भारी वाहनों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध होने के साथ-साथ मार्गो को डाइवर्ट भी किया गया है। लेकिन रेगुलेटर पुल से बेंगमपुर सिडकुल जाते भारी वाहनों पर किसी की लगाम नहीं है यह भारी वाहन बेख़ौफ़ होकर बिना रोक-टोक के यहां से गुजर रहे हैं। जबकि छोटे वाहनों को रोक दिया जाता है। यह ना सिर्फ नियमों की खुली अवहेलना है, बल्कि यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं की जान से खिलवाड़ भी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जब तक बड़े और भारी वाहन इस रास्ते से गुजरते है तब तक एक व्यक्ति यहां विराजमान रहता है। आखिरकार यह प्रभावशाली व्यक्ति कौन है जिस पर बेंगमपुर रेगुलेटर पुल पर कांवड़ यात्रा के दौरान तैनात प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी गण मेहरबान नज़र आ रहे हैं। आप वीडियो में साफ़ साफ़ सुन भी सकते हैं कि लोड स्पीकर के माध्यम से यातायात नियमों का पाठ पढ़ाया जा रहा है लेकिन तैनात कर्मचारी स्वयं ही यातायात नियमों का उल्लंघन कराने पर उतारू है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार छोटे वाहनों के स्वामियों का कहना है कि
बेंगमपुर रेगुलेटर पुल पर तैनात कर्मचारी रोक देते है और उन्हें कांवड़ यात्रा नियमों का हवाला देते हुए कई कई किलोमीटर तक का सफ़र तय करा रहे हैं। जबकि बड़े वाहनों को निकाल दिया जाता है। यह कहां का नियम बनाया गया है। यहां प्रशासन की गैरों पर सख्ती और अपनों पर नरमी नज़र आ रही है। क्या यही अब प्रशासन की नई परिभाषा बन चुकी है। और इस दोहरी नीति‌ ने आमजनों की कमर तोड़ कर रख दी है सूत्रों का तो यहां तक कहना हैं कि कुछ वाहन मालिकों और ट्रांसपोर्टरों को प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है, तभी तो नियम तोड़ने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती है। और आमजनों पर चालान व पूछताछ, लेकिन रसूख वालों को छूट दी जाती है। छोटे वाहनों को रोका जाएगा। उनसे सख़्त लहजे में बात की जाएगी। वही बड़े भारी वाहनों को निकाल दिया जाएगा। या यूं कहा जाए की जानकारी होने के बाद भी आंखें चुरा ली जाती है। और यह दोहरी नीति अब जनता के बीच गुस्से का कारण बन चुकी है। अब यहां आकर सवाल उठना लाजमी है जब कांवड़ मार्ग पर भारी वाहनों की पाबंदी है। तो यह भारी वाहन रेगुलेटर पुल से कैसे गुजर रहे हैं। क्या नियम सिर्फ आम जनता के लिए हैं। और अगर कोई बड़ा हादसा इन बड़े वाहनों से होता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा। सुरक्षा की दृष्टि से उच्चधिकारियों द्वारा इस ओर गंभीरता की आवश्यकता है जिससे रेगुलेटर पुल से भारी और बड़े वाहनों की आवाजाही पुर्ण रुप से बंद हो सकें।

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