श्राद्ध 8 सितम्बर 2025) से 21 सितम्बर 2025 (आश्विन कृष्ण अमावस्या), श्राद्ध करने का समय 11:36 से 12:24 तक रहेगा: आचार्य रमेश सेमवाल महाराज
इमरान देशभक्त रुड़की प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(इमरान देशभक्त) रुडकी। आचार्य रमेश सेमवाल जी महाराज ने भागवत कथा में श्राद्ध की महिमा बताते हुए कहा कि पूर्णिमा के बाद अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं।इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है।आचार्य रमेश सेमवाल जी महाराज ने कहा कि भगवान श्री राम ने भी अपने पिता का श्राद्ध किया था।भीष्म जी ने भी अपने पिता का पिंडदान किया था। श्राद्ध में काले तिल,जो चंदन कुशा चांदी के बर्तन गाय का दूध और गंगाजल तुलसी पत्र का विशेष महत्व है।लोहे के पत्र में कुछ भी नहीं करना चाहिए।पांच ग्रास बली करनी चाहिए, ब्राह्मण भोजन के साथ गाय के लिए चींटी के लिए कौवे के लिए स्वान के लिए अग्नि के लिए भोजन देना चाहिए।प्रातः काल श्रद्धा नहीं करना चाहिए। समय पर ही करना चाहिए।11:36 से 12:24 के बीच पितृ पूजन का श्राद्ध का हमारे हिंदू धर्म दर्शन में बहुत बड़ा महत्व है। भागवत पुराण से पितरों की मुक्ति हो जाती है।भागवत कथा सुनने मात्र से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से पितरों को मोक्ष और सद्गति प्राप्त होती है।श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है।इस साल 7 सितम्बर से 21 सितम्बर तक श्राद्धपक्ष रहेगा, जिन घरों में पितरों को याद किया जाता है, वहां हमेशा खुशहाली रहती है, इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का तर्पण किया जाता है।पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वजों का श्राद्ध करें, इसके लिये शास्त्र सम्मत विचार यह है,कि जिस पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये,यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है,इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिये कहा जाता है।समय से पहले यानि जिन परिजनों की किसी दुर्घटना अथवा सुसाइड आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।पिता के लिये अष्टमी तो माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है।श्राद्ध का मतलब श्रद्धा पूर्वक पितरों को प्रसन्न किए जाने से है।मान्यता के अनुसार किसी के परिजनों का देहांत हो जान के बाद उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है,उसे ही श्राद्ध कहते है।ये भी मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म और तर्पण करने से पितरों को शांति और मुक्ति मिलती है।पुत्रों को श्राद्ध करने का अधिकार है,लेकिन अगर पुत्र न हो तो पौत्र,प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है,वहीं पुत्र के न होने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है।पुत्र,पत्नी,सहोदर भाई आदि श्राद्ध करने के अधिकारी होते है अर्थात् सबसे पूर्व मृतक का पुत्र श्राद्ध करे,यदि पुत्र नहीं हो तो पत्नी श्राद्ध करे।पत्नी भी न होने पर सहोदर भाई आदि क्रमश: श्राद्ध करें।पुत्र,पौत्र,प्रपौत्र,पुत्री का पुत्र,पत्नी का भाई,भाई का पुत्र,पिता,माता,बहू, बहिन सपिण्ड सोदक इनमें पूर्व के न होने से पिछले-पिछले पिण्ड के दाता कहे गये है।श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।श्राद्ध करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है उन्हें मुक्ति प्राप्त होती है।सनातन परंपरा में इसका बड़ा भारी महत्व है।
8 सितंबर 2025 :- प्रतिपदा का श्राद्ध, पितृपक्ष व महालय प्रारम्भ
9 सितंबर 2025 :- द्वितीया का श्राद्ध
10 सितंबर 2025 :- तृतीया का श्राद्ध एवं चतुर्थी का श्राद्ध
11 सितंबर 2025 :- पंचमी का श्राद्ध, भरणी नक्षत्र का श्राद्ध
12 सितंबर 2025 :- षष्ठी का श्राद्ध, कृतिका नक्षत्र का श्राद्ध
13 सितम्बर 2025 :- सप्तमी का श्राद्ध
14 सितम्बर 2025 :- अष्टमी का श्राद्ध
15 सितम्बर 2025 :- नवमी का श्राद्ध,अविधवा नवमी,सौभाग्यवती मृतकाओं का श्राद्ध (ऐसी सुहागन स्त्रियां, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो)
16 सितम्बर 2025 :- दशमी का श्राद्ध
17 सितम्बर 2025 :- एकादशी का श्राद्ध
18 सितम्बर 2025 :- द्वादशी का श्राद्ध, सन्यासियों का श्राद्ध
19 सितम्बर 2025 :- त्रयोदशी का श्राद्ध, मघा नक्षत्र का श्राद्ध
20 सितम्बर 2025 :- चतुर्दशी का श्राद्ध, विष-शास्त्रादि से मृतकों का श्राद्ध
21 सितम्बर 2025 :- सर्वपितृ श्राद्ध व अमावस्या व पूर्णिमा श्राद्ध (वे सभी जातक जिनकी मृत्यु तिथि का हमें ज्ञान नहीं है,उन सभी का श्राद्ध इस दिन कर सकते है)