देहरादून

सावन में मंगला गौरी व्रत से मिले अखंड सौभाग्य का वरदान: श्वेता शर्मा

राजेश कुमार देहरादून प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) देहरादून। वरिष्ठ समाजसेवीका श्वेता शर्मा ने हरिद्वार की गूंज (HKG न्यूज पोर्टल) से खास बातचीत में बताया कि सावन का पावन महीना जब प्रकृति धरती का श्रृंगार करती है, वर्षा की बूंदों से भक्ति की उमंग व ऊर्जा का संचार होता है, तब हिंदू धर्म में चातुर्मास की शुरुआत होती है। यह समय भगवान शिव व माता पार्वती की आराधना का होता है। जहां सोमवार को भोलेनाथ के व्रत रखे जाते हैं, वहीं मंगलवार को मां मंगला गौरी की पूजा होती है, जिसे विवाहित स्त्रियों के लिए विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना गया है। मंगला गौरी व्रत सावन के प्रथम मंगलवार से शुरू करके सावन के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है। यह व्रत स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन की स्थिरता हेतु करती हैं। यह व्रत श्रद्धा, शक्ति, करुणा, प्रेम और तप का अद्भुत संगम है। वेद और पुराणों में माता गौरी को ‘आदिशक्ति’ कहा गया है—वही जो प्रलय में महाकाली बनती हैं और सृजन में सौम्या गौरी। इस व्रत के माध्यम से स्त्री स्वयं को तपस्विनी बनाकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आत्मसात करती है, व्रत के दिन प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर संकल्प लिया जाता है। फिर माता की मूर्ति या चित्र को अक्षत, पुष्प, रोली, चंदन और सुगंधित जल से स्नान करा कर मां मंगला गौरी को 16 श्रृंगार चढ़ाए जाते हैं इस व्रत में 16 वस्तुओं का विधान है16 चूड़ियां, लौंग, सुपारी, इलायची, मखाने, फल, पान, मिठाई और सुहाग की सामग्री। साथ ही, 5 प्रकार के मेवे, 7 प्रकार के धान्य (गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल, मसूर) व जीरा भी अर्पित किया जाता है। उसकी उपरांत कथा कही जाती है। जो कुछ इस प्रकार है: एक साहूकार की पत्नी ने अपने घर भिक्षा मांगने आए साधु को श्रद्धा वश लड्डू में सोने के सिक्के छुपाकर दान दिए। साधु ने नियम भंग समझकर श्राप दे दिया–तुम्हें संतान नहीं होगी। साहूकार की पत्नी के पश्चाताप करने पर साधु ने कहा संतान तो होगी, पर सर्पदंश से 16 वें वर्ष में ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। जब साहूकार को पुत्र हुआ और वह 16 वर्ष का हुआ, तब साहूकार ने अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करवा दिया जिसको सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त था क्योंकि उस कन्या की मां ने श्रद्धा से मंगला गौरी व्रत अपनी पुत्री के सौभाग्य के लिए किया था। व्रत के प्रभाव से युवक की मृत्यु टल गई। और वह दीर्घायु हुआ। इस प्रकार कथा कहकर ओम् मंगला गौरी नमः मंत्र का जाप कर 16 बत्ती वाले दीपक से आरती की जाती है। दिन भर व्रत रखकर एक बार अन्न ग्रहण किया जाता है। यह व्रत पांच वर्षों तक प्रत्येक सावन के मंगलवार को किया जाता है, फिर पांचवें वर्ष में इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। इस दिन पूर्ववत पूजन करके, ब्राह्मण द्वारा हवन कराकर उनको भोजन कराया जाता है व दान दक्षिणा देकर विदा किया जाता है सुहागिन स्त्रियों को भी सुहाग की वस्तुएं दी जाती हैं। व उनका आशीर्वाद लिया जाता है। यह व्रत मां मंगला गौरी को प्रसन्न कर अखंड सौभाग्य पुत्र-सुख और गृह-सुख प्रदान करता है।

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