देहरादून

गुप्त नवरात्रि में मां भगवती की पूजा अर्चना का विशेष महत्व: श्वेता शर्मा

राजेश कुमार देहरादून प्रभारी

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(राजेश कुमार) देहरादून। वरिष्ठ समाजसेविका श्वेता शर्मा ने हरिद्वार की गूंज, HKG न्यूज पोर्टल से खास बातचीत में बताया कि मां भगवती के उपासकों के लिए यूं तो हर दिन भक्ति के लिए श्रेष्ठ ही होता है परंतु वर्ष में कुछ दिन विशेष आराधना के होते हैं जिसमें थोड़ी ही समय में आराधना, तपस्या व नाम जप करने से अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है व भक्तों के लिए मुक्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं, जिसमें सबसे प्रमुख यह गुप्त नवरात्रि के दिन होते हैं। नवरात्रि साल में चार बार आती है। जिनमें से दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि और दो नवरात्रि को प्रकट नवरात्रि कहा जाता है। हिंदी पंचांग के अनुसार चैत्र माह और अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि को उदय नवरात्रि, प्रकट नवरात्रि और बड़ी नवरात्रि कहा जाता है।वहीं आषाढ़ मास और माघ मास के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि को गुप्त नवरात्री और छोटी नवरात्रि कहा जाता हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस समय भगवान विष्णु का निद्राकाल अर्थात चातुर्मास प्रारंभ होता है उस समय देवताओं की शक्तियां कमजोर होने लगतीं हैं और पृथ्वी पर बुरी शक्तियों का प्रकोप बढ़ने लग जाता है। तब पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों की विपत्तियों से रक्षा करने के लिये गुप्त नवरात्रि में आदि शक्ति मां भगवती दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है, ऐसा करने से मां भगवती उनकी रक्षा करतीं हैं व भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जहां प्रकट नवरात्रों में धूमधाम से मां भगवती की आराधना व पूजा की जाती है वहीं गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा गुप्त रीति से की जाती है। इस समय एकांत में बैठकर मां का ध्यान, दुर्गा सप्तशती पाठ, दुर्गा सहस्त्रनाम और दुर्गा चालीसा का पाठ शुभ फलदायी होता है। गुप्त नवरात्रि का अनुष्ठान संतान प्राप्ति और शत्रु पर विजय दिलाने वाला है। इस दौरान तांत्रिक घोर तंत्र साधना भी करते हैं। इन दिनों 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है। यह समय कुंडली जागृत करने का अत्यंत उत्तम समय होता है। साधक दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति के लिए गुप्त नवरात्रि में भगवती के व्रत व अनुष्ठान करते हैं। पूजा अर्चना उसी प्रकार की जाती है जैसे प्रकट नवरात्रों के दौरान होती है। इस दौरान मां के विविध स्वरूप की पूजा की जाती है जिनमें माँ काली, भुवनेश्वरी माता, त्रिपुर सुंदरी, छिन्नमस्तिका, माता बगलामुखी, कमला देवी आदि हैं। सुबह और शाम दोनों समय भक्त मां की आरती कर, अपनी श्रद्धा अनुसार विभिन्न प्रकार के भोग लगाते हैं। स्त्रियां सुहाग का सामान और सुगंधित पदार्थ मां को अर्पित करती हैं और अपने सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करतीं हैं। भक्ति और श्रद्धा के साथ मां को जो भी अर्पित किया जाता है मां उसे सहर्ष स्वीकार करतीं हैं। मन को सांसारिक पदार्थों से हटाकर उस जगतजननी जगदीश्वरी की ओर लगाने का सबसे अच्छा उपाय भक्ति है।

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