हरिद्वार

कलम का जादू अब फीका हो चला, बाज़ार की धूल में साहित्य खो चला: डॉ अवनीश उपाध्याय

रवि चौहान हरिद्वार संवाददाता

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रवि चौहान) हरिद्वार। कलम का जादू, अब फीका हो चला है, बाज़ार की धूल में साहित्य खो चला है।
कविता कहानी की गर्मी है ठंडी पड़ी, नए दौर में कुछ और ही स्वाद है चढ़ा।

साहित्य के पाठक अब कहाँ खोजें ढूंढे, इंटरनेट ने सभी को नशे में बाँध रखा। लाइक्स, शेयर की दौड़ में उलझ गए लोग, सोशल की चकाचौंध ने सबको नचा रखा।

पत्रिकाएँ पुरानी हो गईं, अब कौन पढ़े? किताबों की गंध से, सब दूर हो चले। अब शब्द नहीं, चित्रों का ज़माना है नया, उत्तेजना की चासनी में लिपटी हर छवि।

मौलिक विचार अब बिकते नहीं, देखो, बाजार ने रचनाओं को दाम से तौल दिया। इस दौड़ में खो गईं कला की ऊँचाइयाँ, साहित्य की आत्मा को किसने क़ैद कर लिया?

डॉ० अवनीश कुमार उपाध्याय
बीएएमएस, पीजी (सीआर), पीएचडी ऋषिकुल हरिद्वार

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