हरिद्वार की गूंज (24*7)
(गगन शर्मा) हरिद्वार। श्राद्ध हिन्दू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है। इस दिन पितरों को तृप्त करने के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है। बताया कि जिस परिवार में किसी सदस्य का देहांत हो चुका है। उन्हें मृत्यु के बाद जब तक नया जीवन नहीं मिल जाता तब तक वे सूक्ष्म लोक में वास करते है। शास्त्रों में मान्यता है कि इस दौरान पितरों का आशीर्वाद उनके परिजनों को मिलता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष प्रारंभ होते हैं और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहते हैं। पितृ पक्ष की 15 दिन की अवधि में पूर्वजों का निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है, पितृ पक्ष के दौरान पितरों की पूजा करने से जीवन में आने वाली बाधाएं परेशानियां दूर होती हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष के दिनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। इस दौरान कोई वाहन या नया सामान न खरीदें। इसके अलावा, मांसाहारी भोजन का सेवन बिलकुल न करें। श्राद्ध कर्म के दौरान आप जनेऊ पहनते हैं तो पिंडदान के दौरान उसे बाएं की जगह दाएं कंधे पर रखें। श्राद्ध के दिन भगवदगीता के सातवें अध्याय का माहात्म पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए। श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें। मंत्र ध्यान से पढ़े:-देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव भवन्त्युत। (समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं। ये सब शाश्वत फल प्रदान करने वाले हैं। “श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आपके कुल खानदान को आशीर्वाद देते हैं मंत्र ध्यान से पढ़े :-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा। जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं। कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है। इन सब के साथ साथ अंत में पितरों को संतुष्टि हेतु सर्वाधिक आवश्यक है कि स्वार्थ, धन, जमीन आदि के लिए यदि आपका भाई-बहन से विवाद चल रहा है तो उसे रामायण का स्मरण करके खत्म करे। जिन संतान हेतु आप अपने भाई या बहन को अपना दुश्मन मानने लगे हो कई बार देखा गया है कि अंत समय वह संतान नही बल्कि भाई बहन ही आपकी सेवा कर रहे है। यदि बड़ा भाई या बहन अपने छोटो को अपनी संतान की भाँति स्नेह करे और छोटे अपने बड़ों को अपने माँ बाप की तरह सम्मान दे तो इस बार आपके यहाँ श्राद्ध से निश्चिंत ही आपके पितर संतुष्ट होकर आपके कुल खानदान को आशीर्वाद देगे।