हरिद्वार

ब्लॉक नारासन में किसानों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

गगन शर्मा सह सम्पादक

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(गगन शर्मा) हरिद्वार। हरिद्वार के नारसन ब्लॉक में जिला परियोजना प्रबंधक इकाई, रीप परियोजना हरिद्वार द्वारा आयोजित दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसका उद्देश्य चारा उत्पादन और साइलेज बनाने की तकनीकों को किसानों तक पहुंचाना था। इस कार्यशाला में सहायक प्रबंधक (आजीविका) शिव शंकर बिष्ट और ब्लॉक टीम के सदस्य ललित कुमार ने 25 प्रगतिशील किसान पशुपालकों को महत्वपूर्ण जानकारी दी।

प्रशिक्षण का मुख्य फोकस चारा उत्पादन की प्रक्रिया पर था, जिसमें भूमि तैयारी, बीज चयन, बुआई, सिंचाई और निराई, खाद और उर्वरक का उपयोग, फसल कटाई, और चारा तैयार करने के विभिन्न चरणों को शामिल किया गया। भूमि की तैयारी के अंतर्गत, मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने के लिए उचित जुताई और खाद का उपयोग करने के तरीकों पर प्रकाश डाला गया। बीज चयन में पौष्टिक और उच्च उत्पादकता वाली फसलों जैसे नेपियर घास, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा, और बरसीम के चयन की सलाह दी गई, ताकि पशुओं के लिए बेहतर गुणवत्ता का चारा उपलब्ध हो सके। बुआई के समय, बीजों की दूरी, गहराई, और सिंचाई की विधियों पर ध्यान दिया गया, जिससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके। साथ ही, समय पर निराई और खाद का उपयोग चारा की गुणवत्ता और मात्रा को बढ़ाने में सहायक होते हैं।

इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण में साइलेज बनाने की प्रक्रिया को भी विस्तार से समझाया गया। साइलेज बनाने की प्रक्रिया में पहले उपयुक्त फसलों का चयन करना होता है, जैसे कि मक्का, ज्वार, बाजरा आदि, जिन्हें उनकी पौष्टिकता के कारण चुना जाता है। फसल की कटाई सही समय पर करना महत्वपूर्ण होता है ताकि उसमें मौजूद पोषक तत्व अधिकतम मात्रा में सुरक्षित रह सकें। कटाई के बाद फसल को हल्का सुखाया जाता है और फिर इसे छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। इसके बाद साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त स्थान की तैयारी की जाती है, जिसमें भराई और दबाने की प्रक्रिया की जाती है ताकि हवा का प्रवेश न हो सके, जिससे फसल खराब न हो। अंत में, सीलिंग और भंडारण की प्रक्रिया का पालन किया जाता है, ताकि साइलेज की गुणवत्ता बनी रहे और इसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके।

इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य किसानों को चारा उत्पादन और साइलेज बनाने की उन्नत तकनीकों से अवगत कराना था, जिससे वे अपनी पशुपालन की प्रथाओं में सुधार कर सकें। इससे न केवल पशुओं के लिए उच्च गुणवत्ता का चारा उपलब्ध होगा, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा, क्योंकि वे कम लागत में अधिक उत्पादकता प्राप्त कर सकेंगे। कुल मिलाकर, यह प्रशिक्षण कार्यक्रम किसानों के लिए अत्यधिक उपयोगी रहा, जिसमें उन्होंने बेहतर चारा उत्पादन और संरक्षण की आधुनिक विधियों को सीखा।

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