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राष्ट्रीय कवि संगम की गोष्ठी में गूँजे कवियों‌ के स्वर

रवि चौहान हरिद्वार संवाददाता

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रवि चौहान) हरिद्वार। राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा स्थानीय पाइन क्रेस्ट स्कूल में आयोजित कवि गोष्ठी में नगर के विभिन्न क्षेत्रों से आमांत्रित कवि समूह को सम्बोधित करते हुए संस्था के अध्यक्ष देविंद्र सिंह रावत ने कहा कि स्तरीय तथा सार्थक गोष्ठियों के लगातार आयोजन से संस्था द्वारा धर्मनगरी हरिद्वार को उत्तराखंड की साहित्यिक राजधानी बनाने का पूर्ण प्रयास किया जा रहा है। राष्ट्रस्तरीय कवि तथा संस्था की जिला इकाई के महामंत्री दिव्यांश दुष्यंत ने इस अवसर पर अपना काव्य पाठ करते हये कहा कि- ‘होता समाज का आईना, कवि कहो या दर्पण, जैसी जिसकी सोच हो, उसको वैसा अर्पण।  वरिष्ठ कवि साहित्यकार व चेतना पथ संपादक अरुण कुमार पाठक ने लोकप्रिय प्रेरक गीत रे पथिक तू चल‌, तेरी दूर नहीं मंज़िल, तथा उम्रभर साथ निभाने का खयाल आया था और याद तुम्हारी करते-करते, कितने सावन बीत गये’ सुनाकर समां बाँधा बिजनौर से आए कविताओं के वट वृक्ष कर्मवीर सिंह ने हमें धरती को बचाना है जरूर, नहीं तो गंदी पड़ जाएगी, छंदज्ञाता शशिरंजन समदर्शी ने कुछ अवगुण ऐसे होते है, जो लाख गुण पर भारी हैं तथा देवेंद्र मिश्र ने बधाई गीत आज है तुमको बधाई का सरस पाठ करके ख़ूब तालियाँ बटोरी। माँ सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलन, पुष्पार्पण तथा देवेन्द्र मिश्र की वाणी वंदना से शुरु हुई इस गोष्ठी में, राष्ट्रीय कवि संगम के गोष्ठी प्रमुख प्रभात रंजन ने- कुछ प्रीत लिखूँ, या गीत लिखूँ, बस तुझको ही मन मीत लिखूँ’, श्रीमती मिनाक्षी चावला ने कहा मातृभूमि मैं तेरा कर्ज कैसे उतार दूँ, अरविंद दूबे ने कहा नकाबों से घूस लेकर आईने मौन रहते हैं, यही मंजर रहा गर तो हकीकत कौन बोलेगा, युवा कवियत्री वृंदा ने कहा बेटी तू कमजोर ना बन, निकल बाहर अब मौन ना बन, प्रशांत कौशिक ने उनकी ख्वाहिश की हद को उनके चेहरे से पढ़ लें, कुसुमकार पंत ने कारवाँ कहीं नहीं जाता, बस ये पल बदलता है के साथ विभिन्न रसों व विधाओं में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जबकि, उदीयमान अनुप आर्या ने ‘हम हिन्दू हिन्द हिमालय के वेद ज्ञान के ज्ञानी’ सुनाकर सनातनी पताका फहराई। कार्यक्रम के अंत में पाइन क्रेस्ट स्कूल के प्रधानाचार्य कुलदीप कुमार ने गोष्ठी की समीक्षा करते हुए कहा कि, कविताओं ने ही देश को आजादी दिलाई थी और आज का यह आधुनिक युग, जो कुछ विचारों से अभी भी गुलाम है, को वैचारिक आज़ादी केवल कवि और साहित्यकार ही दिला सकते हैं।

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