
हरिद्वार की गूंज (24*7)
पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव ‘वैलेंटाइन डे’ का खुमार आजकल अपने देश की युवा पीढी पर भी देखा जा रहा है। वर्ष भर विभिन्न मीडिया के माध्यम से देखने को मिलता है कि प्रेम प्रसँग के मामले मे युवा घर से भाग गए, तो कभी देखने को मिलता है कि प्रेम मे असफल होने पर जीवन लीला समाप्त कर ली। इस समस्या का सम्बन्ध शिक्षा या उम्र से है ऐसा कहना मुश्किल है क्योकि पढ़े लिखे युवा भी इस रोग का शिकार होते हुवे देखे गए है। इस समस्या से बचने के लिए इंसान का विवेक, धर्य और सूझबूझ बहुत काम आती है। प्यार के लाभ से इंसान को पाने के लिए अपनी बुरी आदतो को छोड़कर किसी के योग्य बनने मे अपना समय और ऊर्जा लगाता है, जबकि जो इंसान प्यार की परिभाषा नही जानते सिर्फ स्वार्थपूर्ति या शरीर को पाने को ही प्यार समझते है उनका परिणाम दुखद ही देखा गया है। अब सौ बात की एक बात: ये प्यार होता क्या है? प्यार की परिभाषा क्या है? किसे कहते है प्यार? इसमें हर किसी के अपने तर्क हो सकते है, लेकिन यह देखते हुवे कि प्रेम माँ अपने बच्चों से भी करती है, एक सैनिक का देश के प्रति, पत्नी का पति के प्रति, बहन का भाई के प्रति और प्रेमी का प्रेमिका के प्रति। कोई ऐसी परिभाषा जो इन सभी प्रेम को एक धागे मे पिरोह दे वो है’परवाह’ ख्याल रखना। यदि कोई युवक एक ओर तो कहता है कि वह किसी लड़की को प्रेम करता है दूसरी ओर धमकी देता है यदि तुम मेरी न हुई तो किसी की भी नही होने दूंगा, मर जाऊंगा मार दूंगा. तो इसे प्रेम नही स्वार्थ कहा जायेगा। दूसरा उदाहरण कोई लड़की किसी लड़के से कहती है तुम मुझसे शादी करो या अन्य किसी से तुम खुश रहो मेरे लिए इस से बढ़कर कुछ नही, तो इसे ही प्रेम कह सकते है, छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ये मुनासिफ नही आदमी के लिए, प्यार से भी जरूरी कई काम है, प्यार सब कुछ नही जिंदगी के लिए। यदि आप अपने साथी के दुख सुख, सम्मान, परिवार की इज्जत, भविष्य के लिए अपना सुख सुविधा त्यागने की हिम्मत रखते हो तो ही आप कह सकते है कि आपने किसी से सच्चा प्रेम किया, अन्यथा “देखो ओ दिवानो तुम ये काम न करो, प्यार का बदनाम न करो।