शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में हाईफाई हुआ दड़े-सट्टे का धंधा
चर्चा: बुकी पर नहीं विश्वास तो एप का ले रहे सहारा, धडल्ले से चल रहा करोबार
हरिद्वार की गूंज (24*7)
(रजत चौहान) हरिद्वार। आधुनिकता के युग में आज हर काम ऑनलाइन हो गया है। गैर कानूनी तरीके से चलने वाला दड़े सट्टे का कारोबार भी हाईफाई हो चुका है। इसका रिजल्ट आजकल इंटरनेट पर देखा जा रहा है। शहर में चर्चा है कि हरिद्वार धर्मनगरी शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में इन दिनों रोजाना ही करोड़ों का कारोबार हो रहा है। इसे चलाने का काम भी वही लोग कर रहे हैं, जिनके सफेदपॉश लोगो के साथ सीधा संपर्क है। सवाल यहां यह उठता है कि गैर कानूनी होने के बावजूद इसका रिजल्ट कैसे इंटरनेट पर आ रहा है? हरिद्वार शहर से लेकर गावों तक कई इलाकों में चल रहा है दड़े-सट्टे का धंधा, जिसकी रोक स्थानिय पुलिस भी नही करती दिखाई देती है। शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है की यह धंधा बच्चों से लेकर बड़ो व औरतों के हाथो तले से होकर चलता है छोटे-छोटे बच्चे भी इसकी चपेट में आ चुके है। हरिद्वार शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह अवैध धंधा बड़ी ही ज़ोरो पर फल-फूल रहा है।
सट्टेबाजों ने रखे हैं एजेंट
सट्टेबाजों ने काम के लिए आगे एजेंट रखे हुए हैं, जो कि फोन या गली-मोहल्लों में जाकर दड़े का नंबर लिखता है और उसे इसके एवज में कमीशन दी जाती है। धंधे में एजेंटों को दोनों तरफ से ही फायदा होता है, अगर किसी का नंबर आए तो भारी मुनाफा, अगर आए तो भी मुनाफा। यहीं कारण है कि यह धंधा ज्यादा फलफूल रहा है। कई हाई प्रोफाइल लोगों ने कारिंदे रखे हुए हैं।
इसने कई घर किए तबाह
कैसे रिजल्ट ऑनलाइन आ रहा है समझ से परे है। इस गैरकानूनी धंधे ने कई घर तबाह करके रख दिए हैं। रिजल्ट किस तरह से ऑनलाइन आ रहा है, इसकी जांच होनी चाहिए। वही दूसरी और क्रिकेट मैचों पर लग रहे सट्टे पर भी आज कल के युवा बड़ी ही अच्छी तरह ध्यान दे रहे है, सट्टे का काला धंधा अब मोबाइल एप के जरिये भी चलने लगा है। मोबाइल एप ने इन काले व अवैध धंधे को हाइटेक बना दिया है। मोबाइल के एंड्रायड व एप्पल प्लेटफार्म पर कई तरह की एप उपलब्ध हैं, जिन पर मैचों के दौरान सट्टे के लाइव भाव लगातार चलते हैं। एप पर भाव देखिए और बुकी को फोन कर अपना दांव खेल दीजिए।
बुकी पर नहीं विश्वास तो एप का ले रहे सहारा
सट्टा बाजार में बुकी और पटर दो लोग होते हैं। सट्टा लगाने वाले को पंटर कहते हैं, जबकि सट्टा लगवाने वाले को बुकी कहा जाता है। अभी तक पंटर सिर्फ बुकी पर ही निर्भर रहते थे। बुकी जो रेट बताता था, उसी पर विश्वास कर पंटर को सट्टा खेलना पड़ता था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। अधिकतर लोग एप पर चल रहे लाइव रेट देखकर बुकी को कॉल करते हैं और अपना सट्टा लगाते हैं। चर्चा है की कुछ पंटर से सामने आया कि कई बार बुकी गलत दांव लगवा देते थे, लेकिन मोबाइल एप के जरिए शुरू हुई धंधेबाजी से अब इसमें पारदर्शिता आ गई है। अब वे खुद रेट देखकर खेलते हैं। सट्टा खेलने के लिए क्रिकबज, बेट रेट्स, खाई-लगाई समेत अन्य कई तरह की एप उपलब्ध हैं। खाई-लगाई एप प्लेस्टोर से डाउनलोड करने के बाद इसे ओपन करें। ओपन करते ही इसमें कई तरह के ऑप्शन आते हैं। इन ऑप्शन में लाइव चल रहे मैच में शर्त लगाने के लिए भाव आते हैं। क्रिकेट के अलावा फुटबाल के भी मैच के लाइव भाव आते हैं। दूसरा ऑप्शन अपकमिंग का है। इसमें आगे होने वाले मैच के एडवांस भाव आते हैं। इसके अलावा टूर्नामेंट का आप्शन भी है, जिससे पता चलता है कि आगे कौन सा टूर्नामेंट होना है और इसके लिए इस समय क्या भाव चल रहा है। लाइव मैच में बॉल व ओवर का भाव भी आता है, जबकि होने वाले मैच के लिए टीम की हार-जीत पर भाव आता रहता है। इस पर भाव देखकर पंटर अपने बुकी को कॉल करता है और अपनी मनमर्जी की टीम पर या मैच पर सट्टा लगा सकता है।
पहले पैसे जमा कर खुलवाई जाती है ‘आवाज’
सट्टा लगाने के लिए पंटर बुकी से संपर्क करता है। इसके बाद वह बुकी के पास एक तय राशि जमा कराता है। इस राशि के अनुसार ही उसकी ‘आवाज’ खुलती है। यहां आवाज का अर्थ लिमिट से होता है यानि उस पंटर की बुकी के पास सट्टा खेलने की लिमिट क्या होगी। आगे फिर दोनों के तालमेल पर निर्भर है कि बुकी पंटर को कितनी लिमिट राशि तक सट्टा लगवाए।
हारने पर मिलती है तीन प्रतिशत की छूट, सुबह 11 बजे हिसाब
यदि पंटर सट्टे में पैसे हारता है तो बुकी उसे तीन प्रतिशत की छूट देता है, लेकिन जीत में कोई छूट नहीं होती। उदाहरण के तौर पर यदि पंटर ने मैच में एक लाख रुपये हारे हैं तो उसे बुकी को एक लाख रुपये देने होंगे। लेकिन इसमें बुकी उसे तीन प्रतिशत यानि तीन हजार की छूट देता है। इसके अलावा मैच वाले दिन के अगले दिन सुबह 11 बजे तक हर हाल में पैसे का लेन-देन पूरा करना होता है। हार हो या जीत, दोनों पक्ष को इस समय तक पैसे चुकाने पड़ते हैं।