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(राजेश कुमार) देहरादून। बदलते समाज और जमाने मे खाकी की भूमिका में भी बदलाव आते है,जिसके तहत उनकी कार्यशैली, कार्यक्षमता, कार्यवाही में भी बदलाव देखने को मिलते है। देखा जाए तो जैसे जैसे आम जनता की खाकी से अपेक्षा होती है वैसे वैसे खाकी को अपने आपको ढालना होता है,यह कहना है पुलिस कप्तान देहरादून अजय सिंह का। जिनके द्वारा राजधानी की कमान संभालने के बाद राजधानी में बढ़ते साइबर अपराधों, स्ट्रीट क्राइम, लूट आदि अपराधों के अनुरूप अपनी टीम को ढालने को कमर कसी हुई है,जिसके निश्चित ही बेहतर परिणाम होंगे यह उन्हें उम्मीद है। उन्होंने कहा है कि खाकी में इंसान का होना मुश्किल नही।
राजधानी देहरादून द्वारा हाल ही में अपने तरीके का देश का पहले क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया, जिसमे क्राइम मूवी लेखक, फ़िल्म निर्माता,सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, क्राइम रिपोर्टर्स आदि के 40 पेनालिस्ट द्वारा शिरकत करते हुए पुलिस और क्राइम के बीच के रिश्तों का अपने अपने विचारों में व्याख्यान किया। उक्त कार्यक्रम की थीम ‘खाकी में इंसान-कितना संभव?’ रखी गयी थी जो उत्तराखंड पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार की किताब ‘खाकी में इंसान’ पर आधारित थी। उक्त कार्यक्रम में आज तीसरे दिन पुलिस कप्तान देहरादून अजय सिंह द्वारा भी हिस्सा लिया गया, जहां उनके द्वारा खाकी पहने उस इंसान में भी इंसान होने पर जोर दिया व कहा कि कोई भी परफेक्ट नही होता, गलती किसी से भी हो सकती है,पर अगर जहां सुधार की गुंजाइश होती है वहां निश्चित ही बेहतर परिणाम दिखते है। उन्होंने कहा कि पुलिस की कार्यशैली में बदलाव जनता की अपेक्षा के अनुरूप होते है,जैसे जैसी अपेक्षा वैसे वैसे काम। जैसे ट्रैफिक, साइबर क्राइम, हत्या,लूट,डकैती, या जैसा क्राइम पैटर्न और जरूरत होती है खाकी अपने आपको उस हिसाब से ढालती है। उन्होंने कहा कि जनता आज पुलिस से साइबर अपराधों, ट्रैफिक जैसी समस्याओं में सुधार चाहती है तो पुलिस को अपनी दक्षता को बढ़ाना होगा, जनता की अपेक्षा पर खरा उतरना होगा। उन्होंने क्राइम फेस्ट की थीम से जुड़े सवाल पर कहा कि अगर इंसान के अंदर इंसान है तो खाकी के अंदर भी इंसान है।हर इंसान में कमी होती है,चाहे व्यवहार की हो,पारिवारिक, परिवेश की,सभ्यता की। वह जब खाकी पहन ड्यूटी जॉइन करता है तो वह नौकरी में भी वह चीजे साथ लेकर आता है। किंतु उन चीज़ों को भी सुधारा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर रोल मॉडल में अच्छा अधिकारी आये और बेहतर परफॉरमेंस व कार्य दिखाए, तो ऊपर से लेकर कांस्टेबल लेवल तक सुधार आएंगे,वह चाहे मानवीय गुणों में हो या पीड़ित केंद्रित पुलिसिंग, उनके बर्ताव में फर्क दिखेगा। खाकी में इंसान का होना मुश्किल नही है।
उन्होंने खाकी द्वारा निरंतर अपने आपको बेहतर बनाने की कोशिश की सराहना करते हुए कहा कि खाकी अच्छा कर रही है, अच्छा करेगी। उन्होंने सभी जवानों व खाकी पहने हर एक शख्स से कहा कि सभी का सोशल दायरा होता है, निश्चित ही खाकी का भी होगा जहां वह अपनी दिल की बात कह सकता है, अपनी परेशानी कह सकता है। इसके साथ ही खाकी के साथ विभाग भी सदैव खड़ा रहता है, जिसकी कोई भी विभागीय दिक्कत होती है, अधिकारी स्तर पर उसे हल करने का प्रयास किया जाता है।