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हरिद्वार की गूंज (24*7)
(गगन शर्मा) हरिद्वार। दशहरे से पूर्व रामलीला के मंचन का इतिहास बहुत पुराना है। उन दिनों आधुनिक समय की भाँति काफी कुछ मोबाइल में नही होता था। इसलिए शहर हो या देहात क्षेत्र हर जगह रामलीला को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता था। समय बदला तो रामलीला में देखने आने वालो की संख्या घटती गयी। जिसके कारण रामलीला आयोजन के लिए पर्याप्त धन एकत्र करना चुनौती बन गयी। जिसके कारण शॉर्ट कट से दृशको की भीड़ बढ़ाने और धन एकत्र करने के उद्देश से फिल्मी गानो पर उल्टे सीधे कम कपड़ो में किराये के डांसरों पर निर्भर होना पड़ रहा है। जिस पर हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र के कुछ समाजसेवीयो, हिंदूवादी संघटनों, शिक्षको ने आपत्ति दर्ज करते हुए आयोजकों पर कठोर कानूनी कार्यवाही की मांग की। एक गाँव में रामलीला आयोजक ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि धीरे धीरे रामलीला का मंचन बहुत जगह कम हो गया है। भविष्य में रामलीला मंचन होता रहे इसके लिए समाजसेवीयो, हिंदूवादी संघटनों, शिक्षको के साथ साथ, स्थानीय विधायक, सांसद, अन्य नेताओ, आम जनता और व्यापारियों को रामलीला आयोजकों की यथासम्भव आर्थिक मदद करनी चाहिए। ताकि किसी रामलीला आयोजक को शॉर्ट कट की मदद न लेनी पड़े। हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र में भैरव सेना संगठन संस्थापक अध्यक्ष मोहित चौहान का कहना है कि अगर भीड व धन ही इकठठा करना चाहते हैं तो रामलीला आयोजक द्बारा सनातन धर्म के संस्कृति लोक नृत्य या शिक्षा, स्वास्थ्य, मेडिकल नशे के ऊपर व सही गलत का ज्ञान के रूप मे अच्छे सुंदर किरदार, नाटक मनोरंजन के रूप में दिखा सकते हैं ताकि समाज भी जागरूक होगा और इससे देखने वालों का उत्साह वर्धन होगा और सनातन धर्म का अपमान भी नहीं होगा।
निकट भविष्य में यदि दोबारा किसी क्षेत्र में कोई आयोजक इस तरह सनातन धर्म को बदनाम करके रामलीला मंचन करता है, तो उनके खिलाफ स्थानीय पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज कराया जायेगा। एक कम्प्यूटर इंस्टिटूट की संचालिका का कहना है कि अशोभनीय नृत्य की अपेक्षा आजकल इतने सुंदर कानों में रस घोलने वाले मधुर भजन है जिनको सुनकर श्रधालुओ, दृशको की भीड़ निरंतर बढ़ेगी। मगर किसी भी प्रस्तिथि में रामलीला मंचन करने वाले आयोजकों को अश्लिलता का सहारा लेकर पाप नही कामना चाहिए।