क्रांतिकारी शालू सैनी बनी इंसानियत की मिसाल, दो अंतिम संस्कार एक साथ किए
एक मुस्लिम धर्म अनुसार और एक हिंदू धर्म अनुसार, एक को कब्रिस्तान ले गई तो एक को शमशान घाट
हरिद्वार की गूंज (24*7)
(इमरान देशभक्त) रुड़की। महिलाएं शमशान घाट नहीं जाती, इस मिथक को तोड़ पूरे देश के लिए मिशाल बन चुकी क्रांतिकारी शालू सैनी ने एक बार फिर से दो लावारिस शवों को अपना नाम देकर अंतिम संस्कार किया।प्रत्येक दिन किसी न किसी लावारिस की वारिस बनकर क्रांतिकारी शालू सैनी विधि-विधान से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर अब तक तीन हजार से अधिक शवों का अंतिम संस्कार अपना नाम पूरे भारत में रौशन कर रही है। मुजफ्फरनगर में समाज सेवा की अनोखा रूप क्रांतिकारी शालू सैनी द्वारा दिखाया गया है।क्रांतिकारी शालू सैनी द्वारा समाज सेवा को अपना कर्तव्य समझकर किया गया और आज तक उसी तर्ज पर समाज सेवा भी करती आ रही है। क्रांतिकारी शालू सैनी ने बताया की वो हिंदू, मुस्लिम, सिख व ईसाई सभी धर्मों के अनुसार विधि-विधान से अंतिम संस्कार करती है। दो लावारिसों को अपना नाम देकर क्रांतिकारी शालू सैनी ने विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया। जिसमें एक मुस्लिम धर्म से थे वे उन्हें कब्रिस्तान ले गई और एक हिंदू धर्म से थे उन्हें शमशान घाट लेकर गई। क्रांतिकारी शालू सैनी का पहला धर्म इंसानियत है।क्रांतिकारी शालू सैनी ने बताया की अब तक वो करीब तीन हजार से ज्यादा लावारिसों की वारिस बन अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि भगवान ने मुझको समाज सेवा की कसौटी पर उतारा है और मैं इस कसौटी पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करूंगी, क्योंकि भगवान भेाले नाथ ने यदि मुझको इस कार्य के लिए चुना है तो हौसला और हिम्मत भी वही दे रहा हैं।उन्होंने बताया की ये सेवा वो समाज से सहयोग मांग कर करती है। उनका खुद का इतना सामर्थ्य नहीं है, क्योंकि वो एक अकेले ऐसी मदर है, जो सड़क पर ठेला लगाकर अपने बच्चों की जिम्मेदारी पूरी कर रही है। समाज सेवा के क्षेत्र में आज क्रांतिकारी शालू सैनी किसी परिचय की माहताज नही है।लावारिसों की वारिस क्रांतिकारी शालू सैनी के नाम से जनपद के साथ साथ पडोसी जनपदों में भी प्रसिद्धि हो रही है। उन्होंने जनता से भी अपील की कि उनकी सेवा में इच्छा अनुसार सहयोग अवश्य करें।