हरिद्वार

दीपशिखा की कवि गोष्ठी में श्रृंगार रस वर्षा

रवि चौहान हरिद्वार संवाददाता

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(रवि चौहान) हरिद्वार। दीपशिखा साहित्यिक मंच द्वारा संस्था अध्यक्ष डा. मीरा भारद्वाज के राजलोक विहार कालोनी स्थित निवास पर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें आमंत्रित अधिकांश कवियों ने श्रृंगार रस की प्रधानता लिये काव्य रचनाएँ प्रस्तुत कीं।‌ दीपशिखा के सचिव डा. सुशील कुमार त्यागी अमित के काव्यात्मक संचालन में सम्पन्न हुई इस गोष्ठी का श्रीगणेश माँ सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन, पुष्पार्पण तथा युवा कवियित्री वृंदा शर्मा की वाणी वंदना के साथ हुआ। कविता क्रम का आगाज़ करते हुए आशा साहनी ने कहा आशा हूँ आशाओं के गीत सुनने आई हूँ अपने दिल में संचित सारा प्यार लूटने आई हूँ। डा. रजनी रंजना ने सुनाया ‘मैंने जितना चाहा भूलूँ किन्तु याद बौराई, याद तुम्हारी आई।’ चेतना पथ संपादक अरुण कुमार पाठक ने अपनी नज़्म ‘चले जाना ठहर करके, तुम्हें देखा नही है जी भर के’ की लयात्मक प्रस्तुति करके तालियाँ बटोरी। डा. सुशील कुमार त्यागी ‘अमित’ ने ‘अमित मान सम्मान है बेटी, मात-पिता की शान है बेटी’ कहकर बेटी का महिमा मंडन किया।‌‌ बृजेन्द्र हर्ष की व्यथा-कथा ‘मन सरिता की लहरों को मैं आधार नहीं दे पाया हूँ,’ के बाद, मेजबान डा. मीरा भारद्वाज ने ‘प्रहर कोई हो मन भर पी ले, चोला फिर नहीं मिलने वाला, सकल विश्व में अमर एक है भक्ति रस का रे प्याला’ तथा वृंदा शर्मा ने ‘जीवन के सुर समन्वित जब हो ना पाएँगे, कृष्ण जिस पल राधिका से रूठ जाएँगे’ के साथ वातावरण में भक्ति का रंग घोला। डा. अशोक गिरि ने कहा ‘जख्म गहरे दिये थे रात भर जिन्होंने, वे ही दिन भर ढाढस बंधाते रहे। मीन‌ जल से तृप्त हो सम्भव नहीं यह, वायु से भू‌ मुक्त हो सम्भव नहीं ये’ के साथ आदर्शिनी श्रीवास्तव ने जीवन दर्शन प्रस्तुत किया। अपराजिता उनमुक्त ने ‘जहाँ गोलियाँ चलती उनका मानव वेश नहीं होता, ख़ून के प्यासे लोगों का कोई भी देश नहीं होता’ के साथ अहिंसा का संदेश दिया, तो दीन दयाल दीक्षित ‘दीन’ ने ब्रज लोक धुन पर आधारित स्वरचित देश गीत ‘भारत भूमि नौ-नौ आँसू रो रही जी’ प्रस्तुत किया।

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