होलिका दहन पर भद्र का रहेगा साया, पूरे हरिद्वार मे 11 बजे के बाद जलेगी होली: आचार्य विकास जोशी
नीटू कुमार हरिद्वार संवाददाता

हरिद्वार की गूंज (24*7)
(नीटू कुमार) हरिद्वार। आचार्य विकास जोशी ने प्रेस को जारी बयान में बताया कि होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन किया जाता है इस वर्ष 2025 में होलिका दहन की तिथि 13 मार्च है शुभ मुहूर्त रात 11:26 बजे से 12.30 बजे तक है। होलिका दहन करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। परिवार के सभी सदस्यों को होलिका की परिक्रमा करनी चाहिए और होलिका की राख को शरीर पर लगाने का भी महत्व है। होलिका दहन का त्योहार बुराई की अच्छाई पर जीत के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। होलिका दहन के दौरान घर में सुख-संपत्ति की कामना की जाती है। होलिका पूजन करने हेतु भक्त होलिका दहन के दिन सुबह जल्दी उठकर नहा धो लें। व्रत का संकल्प लेने के बाद होलिका दहन की तैयारी करें। जिस जगह पर होलिका दहन करना हो, उस जगह को साफ कर लें।
• यहां होलिका दहन की सारी सामग्री इकट्ठा कर लें। इसके बाद होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमा बनाकर भगवान नरसिंह की पूजा करें। शुभ मुहूर्त के दौरान होलिका की पूजा करें और उसमें अग्नि दें।
• इसके बाद परिवार के साथ होलिका की तीन बार परिक्रमा कर लें। फिर नरसिंह भगवान से प्रार्थना करते हुए होलिका की आग में गेहूं, चने की बालियां, जौ, गोबर के उपले आदि डालें। इसके बाद होलिका की आग में गुलाल और जल चढ़ाएं।
• होलिका की आग शांत होने के बाद उसकी राख को घर ले जाएं। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
• अगर आपके घर में वास्तु दोष है तो होलिका की राख को दक्षिण पूर्व दिशा (आग्नेय कोण) में रखें। इससे घर का वास्तु दोष दूर होता है। होलिका दहन की ज्वाला देखने के बाद ही भोजन करें।
वहीं आचार्य विकास जोशी ने होलिका से जुड़ी कथा बताते हुए कहा आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक राक्षस के घर पर प्रह्लाद का जन्म हुआ था। प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे, जबकि हिरण्यकश्यप खुद को ईश्वर से भी बढ़कर समझता था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति के मार्ग से हटाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। हिरण्यकश्यप ने आगबबूला होकर प्रह्लाद को मारने की भी कोशिशें की, लेकिन वह इसमें भी कामयाब नहीं हो सका। इसके बाद उसने अपनी बह होलिका को मदद के लिए बुलाया। होलिका को शिवजी से वरदान मिला था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती है। इसके बाद योजना बनाई गई कि प्रह्लाद को होलिका की गोद में बैठाकर आग में जला दिया जाएगा। इसके बाद होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सही सलामत बच गया। इसके बाद से होलिका दहन किया जाता है।